दुश्मन Poetry (page 24)
लम्स-ए-आख़िरी
अख़्तर पयामी
बजा कि दुश्मन-ए-जाँ शहर-ए-जाँ के बाहर है
अख़्तर होशियारपुरी
नफ़रतों से चेहरा चेहरा गर्द था
अख़्तर फ़िरोज़
यहाँ मौसम भी बदलें तो नज़ारे एक जैसे हैं
अख़्तर अमान
फ़ौजियों के सर तो दुश्मन के सिपाही ले गए
अख़लाक़ बन्दवी
कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है
अकबर इलाहाबादी
दिल हो ख़राब दीन पे जो कुछ असर पड़े
अकबर इलाहाबादी
मौजूद हैं वो भी बालीं पर अब मौत का टलना मुश्किल है
आजिज़ मातवी
हंगामा क्यूँ बपा है ज़रा बाम पर से देख
आजिज़ मातवी
मिरा है कौन दुश्मन मेरी चाहत कौन रखता है
ऐतबार साजिद
किसी को हम से हैं चंद शिकवे किसी को बेहद शिकायतें हैं
ऐतबार साजिद
कभी तू ने ख़ुद भी सोचा कि ये प्यास है तो क्यूँ है
ऐतबार साजिद
सताइश न कीजिए तबर्रा सही
ऐनुद्दीन आज़िम
क़िस्सा-ए-ख़्वाब हूँ हासिल नहीं कोई मेरा
ऐन ताबिश
तुम्हारी लन-तरानी के करिश्मे देखे-भाले हैं
अहसन मारहरवी
तन्हाई ने पर फैलाए रात ने अपनी ज़ुल्फ़ें
अहमद ज़फ़र
जंगल का सन्नाटा मेरा दुश्मन है
अहमद ज़फ़र
ये न देखो कि मिरे ज़ख़्म बहुत कारी हैं
अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी
मुझ को दुश्मन के इरादों पे भी प्यार आता है
अहमद नदीम क़ासमी
रूह लबों तक आ कर सोचे
अहमद नदीम क़ासमी
दुआ
अहमद नदीम क़ासमी
मैं किसी शख़्स से बेज़ार नहीं हो सकता
अहमद नदीम क़ासमी
जो लोग दुश्मन-ए-जाँ थे वही सहारे थे
अहमद नदीम क़ासमी
जब तिरा हुक्म मिला तर्क मोहब्बत कर दी
अहमद नदीम क़ासमी
हमेशा दिल हवस-ए-इंतिक़ाम पर रक्खा
अहमद जावेद
अन-पढ़ गूँगे का रजज़
अहमद जावेद
हमेशा दिल हवस-ए-इंतिक़ाम पर रक्खा
अहमद जावेद
रू-ए-ताबाँ माँग मू-ए-सर धुआँ बत्ती चराग़
अहमद हुसैन माइल
मैं ही मतलूब ख़ुद हूँ तू है अबस
अहमद हुसैन माइल
उम्र भर कौन निभाता है तअल्लुक़ इतना
अहमद फ़राज़
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