दुख Poetry (page 11)
ऐ मिरे सोच-नगर की रानी
इब्न-ए-इंशा
शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती
इब्न-ए-इंशा
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
इब्न-ए-इंशा
दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो
इब्न-ए-इंशा
यगानगी में भी दुख ग़ैरियत के सहता हूँ
हुरमतुल इकराम
जो मंज़िल तक जा के और कहीं मुड़ जाए
हुमैरा राहत
ये कहना था जो दुनिया कह रही है
हुमैरा राहत
किसी भी राएगानी से बड़ा है
हुमैरा राहत
बारिश के क़तरे के दुख से ना-वाक़िफ़ हो
हुमैरा राहत
अपने दुख में रोना-धोना आप ही आया
हिलाल फ़रीद
सब कुछ खो कर मौज उड़ाना इश्क़ में सीखा
हिलाल फ़रीद
अपने कहते हैं कोई बात तो दुख होता है
हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी
ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं
हातिम अली मेहर
ख़्वाब में तेरा आना-जाना पहले भी था आज भी है
हस्तीमल हस्ती
अज़ीज़ो तुम न कुछ उस को कहो हुआ सो हुआ
हसरत अज़ीमाबादी
न वो इक़रार करता है न वो इंकार करता है
हसन रिज़वी
अब के यारो बरखा-रुत ने मंज़र क्या दिखलाए हैं
हसन रिज़वी
रश्क अपनों को यही है हम ने जो चाहा मिला
हसन नईम
जंगलों की ये मुहिम है रख़्त-ए-जाँ कोई नहीं
हसन नईम
जब कभी मेरे क़दम सू-ए-चमन आए हैं
हसन नईम
दिल वो किश्त-ए-आरज़ू था जिस की पैमाइश न की
हसन नईम
मिल गया दिल निकल गया मतलब
हसन बरेलवी
ऐ फ़ैरी-टेल
हसन अकबर कमाल
उस का फ़िराक़ इतना बड़ा सानेहा न था
हसन अब्बास रज़ा
कल शब क़सम ख़ुदा की बहुत डर लगा हमें
हसन अब्बास रज़ा
हमें तो ख़्वाहिश-ए-दुनिया ने रुस्वा कर दिया है
हसन अब्बास रज़ा
गुलाब-ए-सुर्ख़ से आरास्ता दालान करना है
हसन अब्बास रज़ा
दुश्मन को ज़द पर आ जाने दो दशना मिल जाएगा
हसन अब्बास रज़ा
आओ जीने की बातें करें
हारिस ख़लीक़
हमारे बस में क्या है और हमारे बस में क्या नहीं
हम्माद नियाज़ी
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