दोस्त Poetry (page 24)
सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना
दाग़ देहलवी
साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं
दाग़ देहलवी
मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो
दाग़ देहलवी
जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता
दाग़ देहलवी
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम
दाग़ देहलवी
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
दाग़ देहलवी
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
बात मेरी कभी सुनी ही नहीं
दाग़ देहलवी
अक़्ल हैरान है रहमत का तक़ाज़ा क्या है
चरख़ चिन्योटी
एक मरकज़ पे सिमट आई है सारी दुनिया
चरण सिंह बशर
न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा
चकबस्त ब्रिज नारायण
आँखों को अब निगाह की आदत नहीं रही
बुशरा हाश्मी
मिरी ज़िंदगी है तन्हा तुम्हें कुछ असर तो होता
बबल्स होरा सबा
न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे
बिस्मिल अज़ीमाबादी
जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था
बिमल कृष्ण अश्क
ऐसे में रोज़ रोज़ कोई ढूँडता मुझे
बिमल कृष्ण अश्क
बे-तअल्लुक़ सारे रिश्ते कौन किस का आश्ना
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
लगा के नक़्ब किसी रोज़ मार सकते हैं
बिल्क़ीस ख़ान
दुश्मन ब-नाम-ए-दोस्त बनाना मुझे भी है
बिल्क़ीस ख़ान
सितारे हार चुकी थी सभी जुआरी रात
भवेश दिलशाद
अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
सौदा-ए-इश्क़ और है वहशत कुछ और शय
बेख़ुद देहलवी
शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था
बेख़ुद देहलवी
मुँह फेर कर वो कहते हैं बस मान जाइए
बेख़ुद देहलवी
आशिक़ हैं मगर इश्क़ नुमायाँ नहीं रखते
बेख़ुद देहलवी
उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं
बेकल उत्साही
कौन सा घर है कि ऐ जाँ नहीं काशाना तिरा और जल्वा-ख़ाना तिरा
बेदम शाह वारसी
काबे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए
बेदम शाह वारसी
ऐ तन-परस्त जामा-ए-सूरत कसीफ़ है
बयान मेरठी
मिस्ल-ए-हुबाब-ए-बहर न इतना उछल के चल
बयान मेरठी
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