दिया Poetry (page 91)
आख़िरी टीस आज़माने को
अदा जाफ़री
वो आ रहा था मगर मैं निकल गया कहीं और
अबुल हसनात हक़्क़ी
नुमू तो पहले भी था इज़्तिराब मैं ने दिया
अबुल हसनात हक़्क़ी
मेहनत से मिल गया जो सफ़ीने के बीच था
अबु तुराब
तसव्वुरात में इन को बुला के देख लिया
अबु मोहम्मद वासिल
मैं निबल तन्हा न इस दुनिया की सोहबत सीं हुआ
आबरू शाह मुबारक
फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र
आबरू शाह मुबारक
ये बाव क्या फिरी कि तिरी लट पलट गई
आबरू शाह मुबारक
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो
आबरू शाह मुबारक
जलते हैं और हम सीं जब माँगते हो प्याला
आबरू शाह मुबारक
इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो
आबरू शाह मुबारक
हुस्न पर है ख़ूब-रूयाँ में वफ़ा की ख़ू नहीं
आबरू शाह मुबारक
ज़मीं पे आग फ़लक पर धुआँ दिखाई दिया
अबरार आज़मी
यूँ ही निमटा दिया है जिस को तू ने
अबरार अहमद
हमारे दुखों का इलाज कहाँ है
अबरार अहमद
गुरेज़ाँ था मगर ऐसा नहीं था
अबरार अहमद
ज़िंदगी भर जिन्हों ने देखे ख़्वाब
आबिद मुनावरी
सिर्फ़ कर्ब-ए-अना दिया है मुझे
आबिद मुनावरी
क्यूँ चलती ज़मीं रुकी हुई है
आबिद मलिक
हज़ार ता'ने सुनेगा ख़जिल नहीं होगा
आबिद मलिक
जिन्हें था फ़ख़्र नवाब-ओ-नजीब होते हैं
आबिद काज़मी
रात
आबिद आलमी
मिरा बदन है मगर मुझ से अजनबी है अभी
आबिद आलमी
अभी तो आप ही हाइल है रास्ता शब का
अभिषेक शुक्ला
उस ने चलते चलते लफ़्ज़ों का ज़हराब
अब्दुर्रहीम नश्तर
फिर इक नए सफ़र पे चला हूँ मकान से
अब्दुर्रहीम नश्तर
इन काली सड़कों प अक्सर ध्यान आया
अब्दुर्रहीम नश्तर
क्या कीजिए रक़म सनद-ए-एहतिशाम-ए-ज़ुल्फ़
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
दिल दिया वहशत लिया और ख़ुद को रुस्वा कर लिया
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
बुत यहाँ मिलते नहीं हैं या ख़ुदा मिलता नहीं
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
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