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Collection: दिया Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 66 - Darsaal

दिया Poetry (page 66)

ग़म्ज़ा-ए-मा'शूक़ मुश्ताक़ों को दिखलाती है तेग़

बयान मेरठी

आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी

बयान मेरठी

दिलबरों के शहर में बेगानगी अंधेर है

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

ले के दिल उस शोख़ ने इक दाग़ सीने पर दिया

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

जो ज़मीं पर फ़राग़ रखते हैं

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

ज़ब्त-ए-ग़म कर भी लिया तो क्या किया

बासित भोपाली

शौक़ को बे-अदब किया इश्क़ को हौसला दिया

बासित भोपाली

हर तरफ़ सोज़ का अंदाज़ जुदागाना है

बासित भोपाली

हर-चंद मेरे हाल से वो बे-ख़बर नहीं

बासिर सुल्तान काज़मी

ये उन का खेल तो देखो कि एक काग़ज़ पर

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

तज़्किरे में तिरे इक नाम को यूँ जोड़ दिया

बशीर फ़ारूक़ी

तज़्किरे में तिरे इक नाम को यूँ जोड़ दिया

बशीर फ़ारूक़ी

कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दिया

बशीर बद्र

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा

बशीर बद्र

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

बशीर बद्र

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

बशीर बद्र

पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है

बशीर बद्र

पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में

बशीर बद्र

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे

बशीर बद्र

मिरी ज़िंदगी भी मिरी नहीं ये हज़ार ख़ानों में बट गई

बशीर बद्र

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

बशीर बद्र

घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे

बशीर बद्र

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

बशीर बद्र

जल्वों का उन के दिल को तलब-गार कर दिया

बशीरुद्दीन राज़

वक़्त के कटहरे में

बशर नवाज़

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