दिया Poetry (page 63)
वो ज़माना नज़र नहीं आता
दाग़ देहलवी
उस के दर तक किसे रसाई है
दाग़ देहलवी
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ
दाग़ देहलवी
शब-ए-वस्ल भी लब पे आए गए हैं
दाग़ देहलवी
पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह
दाग़ देहलवी
मुझ सा न दे ज़माने को परवरदिगार दिल
दाग़ देहलवी
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
दाग़ देहलवी
कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया
दाग़ देहलवी
इस नहीं का कोई इलाज नहीं
दाग़ देहलवी
होश आते ही हसीनों को क़यामत आई
दाग़ देहलवी
दिल मुब्तला-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार ही रहा
दाग़ देहलवी
दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने
दाग़ देहलवी
भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले
दाग़ देहलवी
अब वो ये कह रहे हैं मिरी मान जाइए
दाग़ देहलवी
नज़रों के गिर्द यूँ तो कोई दायरा न था
डी. राज कँवल
जो मेरी छत का रस्ता चाँद ने देखा नहीं होता
चित्रांश खरे
दोनों की आरज़ू में चमक बरक़रार है
चित्रांश खरे
इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त
चराग़ हसन हसरत
या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता
चराग़ हसन हसरत
क़रार खो के चले बे-क़रार हो के चले
चरख़ चिन्योटी
क़रार खो के चले बे-क़रार हो के चले
चरख़ चिन्योटी
हुस्न के जल्वे लुटाए तिरी रा'नाई ने
चरख़ चिन्योटी
क़तरा क़तरा एहसास
चन्द्रभान ख़याल
कैसा वो मौसम था ये तो समझ न पाए हम
चंद्र प्रकाश शाद
देते हैं मेरे जाम में देखें शराब कब
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
दौर-ए-निगाह-ए-साक़ी-ए-मस्ताना एक है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
हल्की हल्की बूँदें बरसीं पंछी करें कलोल
चमन लाल चमन
मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले
चकबस्त ब्रिज नारायण
मिरी बे-ख़ुदी है वो बे-ख़ुदी कहीं ख़ुदी का वहम-ओ-गुमाँ नहीं
चकबस्त ब्रिज नारायण
दिल किए तस्ख़ीर बख़्शा फ़ैज़-ए-रूहानी मुझे
चकबस्त ब्रिज नारायण
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