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Collection: दिया Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 58 - Darsaal

दिया Poetry (page 58)

ज़माना बर-सर-ए-आज़ार था मगर 'फ़ानी'

फ़ानी बदायुनी

यूँ न किसी तरह कटी जब मिरी ज़िंदगी की रात

फ़ानी बदायुनी

यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए

फ़ानी बदायुनी

रोज़-ए-जज़ा गिला तो क्या शुक्र-ए-सितम ही बन पड़ा

फ़ानी बदायुनी

फिर किसी की याद ने तड़पा दिया

फ़ानी बदायुनी

मेरी हवस को ऐश-ए-दो-आलम भी था क़ुबूल

फ़ानी बदायुनी

हर तबस्सुम का दिया एक तबस्सुम से जवाब

फ़ानी बदायुनी

यूँ नज़्म-ए-जहाँ दरहम-ओ-बरहम न हुआ था

फ़ानी बदायुनी

वा-ए-नादानी ये हसरत थी कि होता दर खुला

फ़ानी बदायुनी

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

मुझ को मिरे नसीब ने रोज़-ए-अज़ल से क्या दिया

फ़ानी बदायुनी

माया-ए-नाज़-ए-राज़ हैं हम लोग

फ़ानी बदायुनी

मर कर मरीज़-ए-ग़म की वो हालत नहीं रही

फ़ानी बदायुनी

ख़ुदा असर से बचाए इस आस्ताने को

फ़ानी बदायुनी

जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर

फ़ानी बदायुनी

हासिल-ए-इल्म-ए-बशर जहल का इरफ़ाँ होना

फ़ानी बदायुनी

इक फ़साना सुन गए इक कह गए

फ़ानी बदायुनी

दिल की हर लर्ज़िश-ए-मुज़्तर पे नज़र रखते हैं

फ़ानी बदायुनी

बे-ख़ुदी पे था 'फ़ानी' कुछ न इख़्तियार अपना

फ़ानी बदायुनी

ऐ अजल ऐ जान-ए-'फ़ानी' तू ने ये क्या कर दिया

फ़ानी बदायुनी

सहता रहा जफ़ा-ए-दोस्त कहता रहा अदा-ए-दोस्त

फ़ना निज़ामी कानपुरी

हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया

फ़ना निज़ामी कानपुरी

चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद

फ़ना निज़ामी कानपुरी

ऐ 'फ़ना' मेरी मय्यत पे कहते हैं वो

फ़ना बुलंदशहरी

निकले वो फूल बन के तिरे गुल्सिताँ से हम

फ़ना बुलंदशहरी

काफ़िर-ए-इश्क़ को क्या से क्या कर दिया

फ़ना बुलंदशहरी

जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गया

फ़ना बुलंदशहरी

दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया

फ़ना बुलंदशहरी

ग़ज़लें लिख लिख पागल होने वाला हूँ

फख़्र अब्बास

बला से बर्क़ ने फूँका जो आशियाने को

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

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