दिया Poetry (page 57)
उसे ख़बर थी कि हम विसाल और हिज्र इक साथ चाहते हैं
फ़रहत एहसास
मिरी मोहब्बत में सारी दुनिया को इक खिलौना बना दिया है
फ़रहत एहसास
वो महफ़िलें पुरानी अफ़्साना हो रही हैं
फ़रहत एहसास
रास्ता दे ऐ हुजूम-ए-शहर घर जाएँगे हम
फ़रहत एहसास
ना-क़ाबिल-ए-यक़ीं था अगरचे शुरूअ' में
फ़रहत एहसास
मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे
फ़रहत एहसास
मिरी मोहब्बत में सारी दुनिया को इक खिलौना बना दिया है
फ़रहत एहसास
खड़ी है रात अंधेरों का अज़दहाम लगाए
फ़रहत एहसास
जो इश्क़ चाहता है वो होना नहीं है आज
फ़रहत एहसास
जिस्म की क़ैद से सब रंग तुम्हारे निकल आए
फ़रहत एहसास
जिस्म के पार वो दिया सा है
फ़रहत एहसास
झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में
फ़रहत एहसास
हम को बरा-ए-दुनिया बे-जान कर दिया है
फ़रहत एहसास
औरों का सारा काम मुझे दे दिया गया
फ़रहत एहसास
अजीब तजरबा आँखों को होने वाला था
फ़रहत एहसास
आया ज़रा सी देर रहा ग़ुल गया बदन
फ़रहत एहसास
शौक़-ए-बेहद ने किसी गाम ठहरने न दिया
फ़रहान सालिम
शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ
फ़रहान सालिम
अक्स कुछ न बदलेगा आइनों को धोने से
फ़रहान सालिम
साज़ दे के तारों को छेड़ तो दिया तुम ने
फ़रीद जावेद
न बुत-कदे में न का'बे में सर झुकाने से
फ़रीद जावेद
न बुत-कदे में न का'बे में सर झुकाने से
फ़रीद जावेद
वो अक्स-ए-दिल-ए-आश्ना छोड़ आए
फ़राज़ सुल्तानपूरी
मोहब्बत का दिया ऐसे बुझा था
फ़रह इक़बाल
कोई जब मिल के मुस्कुराया था
फ़रह इक़बाल
ख़ुद ही दिया जलाती हूँ
फ़रह इक़बाल
ज़रा सी बात पे क्या क्या न खो दिया मैं ने
फ़राग़ रोहवी
कभी यक़ीं से हुई और कभी गुमाँ से हुई
फ़राग़ रोहवी
हमारे साथ उमीद-ए-बहार तुम भी करो
फ़राग़ रोहवी
दयार-ए-शब का मुक़द्दर ज़रूर चमकेगा
फ़राग़ रोहवी
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