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Collection: दिया Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 3 - Darsaal

दिया Poetry (page 3)

बड़े सलीक़े से तोड़ा मिरा यक़ीन उस ने

ज़िया ज़मीर

तिरी निगह से इसे भी गुमाँ हुआ कि मैं हूँ

ज़िया जालंधरी

तू ने नज़रों को बचा कर इस तरह देखा मुझे

ज़िया फ़तेहाबादी

इश्क़ ने कर दिया क्या क्या सुख़न-आरा तिरे नाम

ज़िया फ़ारूक़ी

विर्सा

ज़ेहरा निगाह

क़िस्सा गुल-बादशाह का

ज़ेहरा निगाह

कहानी गुल-ज़मीना की

ज़ेहरा निगाह

गुल-चाँदनी

ज़ेहरा निगाह

एक लड़की

ज़ेहरा निगाह

अब तो कुछ ऐसा लगता है

ज़ेहरा निगाह

क़ुर्बतों से कब तलक अपने को बहलाएँगे हम

ज़ेहरा निगाह

अब तक शरीक-ए-महफ़िल-ए-अग़्यार कौन है

ज़ेहरा निगाह

वो बोलती कुछ भी नहीं

ज़ेहरा अलवी

शिकस्त-ए-आरज़ू

ज़ेहरा अलवी

शहरी सहूलतें

ज़ीशान साहिल

साँप

ज़ीशान साहिल

नींद

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

मोहब्बत का जन्म-दिन

ज़ीशान साहिल

मेरी चिड़ियाँ हमेशा मर जाती हैं

ज़ीशान साहिल

जगह

ज़ीशान साहिल

ईरीना

ज़ीशान साहिल

एक मंज़र की ख़ामोशी

ज़ीशान साहिल

दीवार और चिड़िया

ज़ीशान साहिल

चाक़ू

ज़ीशान साहिल

आँसू की वजह

ज़ीशान साहिल

आख़िरी ख़्वाहिश

ज़ीशान साहिल

दिल मुज़्तरिब है और परेशान जिस्म है

ज़ीशान साहिल

ऐसा लगता है जैसे पूरी है

ज़ीशान साहिल

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