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Collection: दिया Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 29 - Darsaal

दिया Poetry (page 29)

तिलिस्म तोड़ दिया इक शरीर बच्चे ने

सरफ़राज़ दानिश

सफ़ीना मौज-ए-बला के लिए इशारा था

सरफ़राज़ दानिश

क़ाबिज़ रहा है दिल पे जो सुल्तान की तरह

सरफ़राज़ शाहिद

गुज़रा हुआ ज़माना फिर याद आ रहा है

सरदार सोज़

ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं मुझे

सरदार सोज़

रहता है कब इक रविश पर आसमाँ

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

हमारी काविश-ए-शेर-ओ-सुख़न बे-कार जाती है

सदार आसिफ़

एक नाज़ुक दिल के अंदर हश्र बरपा कर दिया

सरस्वती सरन कैफ़

क़र्ज़

सारा शगुफ़्ता

परिंदे की आँख खुल जाती है

सारा शगुफ़्ता

परिंदा कमरे में रह गया

सारा शगुफ़्ता

कैसे टहलता है चाँद

सारा शगुफ़्ता

चराग़ जब मेरा कमरा नापता है

सारा शगुफ़्ता

बदन से पूरी आँख है मेरी

सारा शगुफ़्ता

आतिश-दान

सारा शगुफ़्ता

आँखें दो जुडवाँ बहनें

सारा शगुफ़्ता

आधा कमरा

सारा शगुफ़्ता

ये आह-ओ-फ़ुग़ाँ क्यूँ है दिल-ए-ज़ार के आगे

साक़िब लखनवी

ग़श भी आया मिरी पुर्सिश को क़ज़ा भी आई

साक़िब लखनवी

बस ऐ फ़लक नशात-ए-दिल का इंतिक़ाम हो चुका

साक़िब लखनवी

मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था

साक़ी फ़ारुक़ी

मुर्दा-ख़ाना

साक़ी फ़ारुक़ी

मुहासबा

साक़ी फ़ारुक़ी

हमल-सरा

साक़ी फ़ारुक़ी

अलकुबड़े

साक़ी फ़ारुक़ी

मौत ने पर्दा करते करते पर्दा छोड़ दिया

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए

साक़ी फ़ारुक़ी

ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना

साक़ी फ़ारुक़ी

हैं सेहर-ए-मुसव्विर में क़यामत नहीं करते

साक़ी फ़ारुक़ी

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