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Collection: दिया Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 28 - Darsaal

दिया Poetry (page 28)

दीवार पे रक्खा हुआ मिट्टी का दिया मैं

सऊद उस्मानी

तुझ को मेरे क़ुर्ब में पा कर जलते हैं दीवाने लोग

सत्यपाल जाँबाज़

आधा-अधूरा शख़्स

सत्यपाल आनंद

सलीब लाद के काँधे पे चल रहा हूँ मैं

सत्य नन्द जावा

यूँ एहतिमाम-ए-रद्द-ए-सहर कर दिया गया

सत्तार सय्यद

यूँ एहतिमाम-ए-रद्द-ए-सहर कर दिया गया

सत्तार सय्यद

कैसे बुझाएँ कौन बुझाए बुझे भी क्यूँ

सरवत ज़ेहरा

अब तो सँवारने के लिए हिज्र भी नहीं

सरवत ज़ेहरा

साए का इज़्तिराब

सरवत ज़ेहरा

इर्तिक़ा

सरवत ज़ेहरा

बिस्तर और बावर्ची

सरवत ज़ेहरा

अजाइब-ख़ाना

सरवत ज़ेहरा

आगही का जाल

सरवत ज़ेहरा

सवाब की दुआओं ने गुनाह कर दिया मुझे

सरवत ज़ेहरा

फिर आस दे के आज को कल कर दिया गया

सरवत ज़ेहरा

हमीं को भूल गए आप के भी क्या कहने

सरवत मुख़तार

ऐ ख़्वाब-ए-दिल-नवाज़ न आ कर सता मुझे

सरवर नेपाली

बातों से सितमगर मुझे बहलाता रहा वो

सरवर मजाज़

क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-ला-हासिल में है

सरवर आलम राज़

ये जो रौशनी है कलाम में कि बरस रही है तमाम में

सरवत हुसैन

पेपर-वेट

सरवत हुसैन

लफ़्ज़ों के दरमियान

सरवत हुसैन

सुब्ह के शोर में नामों की फ़रावानी में

सरवत हुसैन

कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया

सरवत हुसैन

नींद से जागी हुई आँखों को अंधा कर दिया

सरमद सहबाई

कौन है किस ने पुकारा है सदा कैसे हुई

सरमद सहबाई

दश्त में है एक नक़्श-ए-रहगुज़र सब से अलग

सरमद सहबाई

बे-दिली में भी दिल बड़ा रखना

सरमद सहबाई

लड़खड़ाता हूँ कभी ख़ुद ही सँभल जाता हूँ

सरफ़राज़ नवाज़

किसे ख़बर थी कि इस को भी टूट जाना था

सरफ़राज़ नवाज़

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