दिया Poetry (page 19)
एक दिन न रोने का फ़ैसला किया मैं ने
शहपर रसूल
इज़हार-ए-इश्क़ उस से न करना था 'शेफ़्ता'
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
गोर में याद-ए-क़द-ए-यार ने सोने न दिया
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
दिल का गिला फ़लक की शिकायत यहाँ नहीं
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
दस्त-ए-अदू से शब जो वो साग़र लिया किए
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
तआ'रुफ़
शीरीं अहमद
गिरता हुआ दरख़्त
शीरीं अहमद
दावत-नामा
शीरीं अहमद
गली के मोड़ से घर तक अँधेरा क्यूँ है 'निज़ाम'
शीन काफ़ निज़ाम
वही न मिलने का ग़म और वही गिला होगा
शीन काफ़ निज़ाम
मंज़िलों का निशान कब देगा
शीन काफ़ निज़ाम
अब तेरे इंतिज़ार की आदत नहीं रही
शाज़िया अकबर
हम-ज़ाद
शाज़ तमकनत
दर-गुज़र
शाज़ तमकनत
ज़रा सी बात थी बात आ गई जुदाई तक
शाज़ तमकनत
मैं तो चुप था मगर उस ने भी सुनाने न दिया
शाज़ तमकनत
क्या करूँ रंज गवारा न ख़ुशी रास मुझे
शाज़ तमकनत
जाने वाले तुझे कब देख सकूँ बार-ए-दिगर
शाज़ तमकनत
ज़बानें चुप रहें लेकिन मिज़ाज-ए-यार बोलेगा
शायान क़ुरैशी
शाम के ढलते सूरज ने ये बात मुझे समझाई है
शायान क़ुरैशी
हालात के कोहना दर-ओ-दीवार से निकलें
शायान क़ुरैशी
बात हो दैर-ओ-हरम की या वतन की बात हो
शायान क़ुरैशी
फ़रियाद और तुझ को सितमगर कहे बग़ैर
शौक़ क़िदवाई
अबरू है का'बा आज से ये नाम रख दिया
शौक़ क़िदवाई
तुम्हें हुस्न ने पुर-जफ़ा कर दिया
शौक़ देहलवी मक्की
महव-ए-नग़्मा मिरा क़ातिल जो रहा करता है
शौक़ बहराइची
किया जो ए'तिबार उन पर मरीज़-ए-शाम-ए-हिज्राँ ने
शौक़ बहराइची
हो कैसे किसी वादे का इक़रार रजिस्टर्ड
शौक़ बहराइची
ऐ हम-सफ़ीर तलख़ी-ए-तर्ज़-ए-बयाँ न छोड़
शौक़ बहराइची
रात तारों से जब सँवरती है
शौकत परदेसी
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