दिया Poetry (page 15)
शगुफ़्ता हो के बैठे थे वो अपने बे-क़रारों में
सय्यद फ़रज़नद अहमद सफ़ीर
हमें तो याद नहीं कोई लम्हा-ए-इशरत
सय्यद बासित हुसैन माहिर लखनवी
ज़ीस्त में कोशिश-ए-नाकाम से पहले पहले
सय्यद आरिफ़ अली
ज़िंदा हुआ है आज तू मरने के ब'अद भी
सय्यद अारिफ़
लग़्ज़िशों से मावरा तू भी नहीं मैं भी नहीं
सय्यद अारिफ़
अपने लिए भी कोई रिआयत रवा नहीं
सय्यद अनवार अहमद
कल पहली बार उस से इनायत सी हो गई
सय्यद अनवार अहमद
अजीब शय है तरह-दार भी तमन्ना भी
सय्यद अमीन अशरफ़
शोला-ए-इश्क़ में जो दिल को तपाँ रखते हैं
सय्यद अहमद शमीम
अपने ख़्वाबों को इक दिन सजाते हुए
स्वप्निल तिवारी
बजाए मय दिया पानी का इक गिलास मुझे
सुरूर जहानाबादी
पदमनी
सुरूर जहानाबादी
फ़क़ीरों पे अपने करम इक ज़रा कर
सुरूर जहानाबादी
सुनी है रौशनी के क़त्ल की जब से ख़बर मैं ने
सुरूर अम्बालवी
मेरे और अपने दरमियाँ उस ने
सुरेन्द्र शजर
एक दिन मेरा आईना मुझ को
सुरेन्द्र शजर
सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की
सुल्तान सुकून
सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की
सुल्तान सुकून
जब वो तन्हा कभी हुआ होगा
सुल्तान सुकून
रात दिन शाम-ओ-सहर सब एक रंग
सुल्तान शाहिद
साअत-ए-मर्ग-ए-मुसलसल हर नफ़स भारी हुई
सुल्तान अख़्तर
मिरी क़दीम रिवायत को आज़माने लगे
सुल्तान अख़्तर
मैं लड़खड़ाया तो मुझ को गले लगाने लगे
सुल्तान अख़्तर
काम आती नहीं अब कोई तदबीर हमारी
सुल्तान अख़्तर
अपनी तहज़ीब की दीवार सँभाले हुए हैं
सुल्तान अख़्तर
न ढलती शाम न ठंडी सहर में रक्खा है
सुलेमान ख़ुमार
कोई दिया किसी चौखट पे अब न जलने का
सुलेमान ख़ुमार
इस एक सोच में गुम हैं ख़याल जितने हैं
सुलेमान ख़ुमार
गुज़रते लम्हों के दिल में क्या है हमें पता है
सुलेमान ख़ुमार
मैं ख़ुद से मायूस नहीं हूँ
सुलैमान अरीब
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