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Collection: दिल Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 196 - Darsaal

दिल Poetry (page 196)

जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

इब्न-ए-इंशा

जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में

इब्न-ए-इंशा

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

हम उन से अगर मिल बैठे हैं क्या दोश हमारा होता है

इब्न-ए-इंशा

दिल किस के तसव्वुर में जाने रातों को परेशाँ होता है

इब्न-ए-इंशा

दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ

इब्न-ए-इंशा

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

इब्न-ए-इंशा

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

कल जो मैं ने झाँक के देखा उस की नीली आँखों में

हुसैन माजिद

धूल-भरी आँधी में सब को चेहरा रौशन रखना है

हुसैन माजिद

उलझनें इतनी थीं मंज़र और पस-मंज़र के बीच

हुसैन ताज रिज़वी

मैं उस की आँख में वो मेरे दिल की सैर में था

हुसैन ताज रिज़वी

जब झूट रावियों के क़लम बोलने लगे

हुसैन ताज रिज़वी

इस हाल में जीते हो तो मर क्यूँ नहीं जाते

हुसैन ताज रिज़वी

है मेरे गिर्द यक़ीनन कहीं हिसार सा कुछ

हुसैन ताज रिज़वी

ढली जो शाम नज़र से उतर गया सूरज

हुसैन ताज रिज़वी

ज़मीं का दम निकलता जा रहा है

हुसैन आबिद

ज़मीं का दम निकलता जा रहा है

हुसैन आबिद

ज़ौक़-ए-तकल्लुम पर उर्दू ने राह अनोखी खोली है

हुरमतुल इकराम

वो दिल समो ले जो दामन में काएनात का कर्ब

हुरमतुल इकराम

वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा

हुरमतुल इकराम

वो आलम है कि हर मौज-ए-नफ़स है रूह पर भारी

हुरमतुल इकराम

वक़्त गर्दिश में ब-अंदाज़-ए-दिगर है कि जो था

हुरमतुल इकराम

उस के सिवा क्या अपनी दौलत

हुरमतुल इकराम

ठहरेगा वही रन में जो हिम्मत का धनी है

हुरमतुल इकराम

सूरत-ए-सब्ज़ा-ए-बे-गाना चमन से गुज़रे

हुरमतुल इकराम

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