धुआं Poetry (page 12)
दास्तानों में मिले थे दास्ताँ रह जाएँगे
फ़ाज़िल जमीली
ज़मज़मा-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ दूर तक
फ़ाज़िल अंसारी
हुई दिल टूटने पर इस तरह दिल से फ़ुग़ाँ पैदा
फ़ाज़िल अंसारी
चमक सितारों की नज़रों पे बार गुज़री है
फ़ाज़िल अंसारी
राह में उस की चलें और इम्तिहाँ कोई न हो
फ़य्याज़ फ़ारुक़ी
राह में उस की चलें और इम्तिहाँ कोई न हो
फ़य्याज़ फ़ारुक़ी
मुनव्वर जिस्म-ओ-जाँ होने लगे हैं
फ़सीह अकमल
इस तमाशे का सबब वर्ना कहाँ बाक़ी है
फ़रियाद आज़र
यूँ मुसल्लत तो धुआँ जिस्म के अंदर तक है
फ़र्रुख़ जाफ़री
था अबस ख़ौफ़ कि आसेब-ए-गुमाँ मैं ही था
फ़र्रुख़ जाफ़री
कोई भी शख़्स न हंगामा-ए-मकाँ में मिला
फ़ारूक़ शफ़क़
इतनी ख़राब सूरत-ए-हालात भी नहीं
फ़ारूक़ नाज़की
ये गर्द-ए-राह ये माहौल ये धुआँ जैसे
फ़ारूक़ मुज़्तर
हथेली से ठंडा धुआँ उठ रहा है
फरीहा नक़वी
शनासाई का सिलसिला देखती हूँ
फरीहा नक़वी
राज़ उबल पड़े आख़िर आसमाँ के सीनों से
फ़रहत क़ादरी
तहरीर की फ़ुर्सत
फ़रहत एहसास
मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे
फ़रहत एहसास
अक्स कुछ न बदलेगा आइनों को धोने से
फ़रहान सालिम
बिजलियाँ टूट पड़ीं जब वो मुक़ाबिल से उठा
फ़ानी बदायुनी
जब तेरी समुंदर आँखों में
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे
एज़ाज़ अहमद आज़र
इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे
एज़ाज़ अहमद आज़र
किसी के शिकवा-हा-ए-जौर से वाक़िफ़ ज़बाँ क्यूँ हो
एजाज़ वारसी
बुझी नहीं मिरे आतिश-कदे की आग अभी
एजाज़ गुल
यहीं था बैठा हुआ दरमियाँ कहाँ गया मैं
एजाज़ गुल
तुम जलाना मुझे चाहो तो जला दो लेकिन
एहतिशाम अख्तर
ख़्वाब आँखों में निहाँ है अब भी
एहतिशाम अख्तर
दिल-ए-बर्बाद को छोटा सा मकाँ भी देगा
एहतिशाम अख्तर
शायद अभी बाक़ी है कुछ आग मोहब्बत की
एहसान दरबंगावी
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