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Collection: धूप Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 21 - Darsaal

धूप Poetry (page 21)

वक़्त अजीब चीज़ है वक़्त के साथ ढल गए

हसन आबिद

पानी ने जिसे धूप की मिट्टी से बनाया

हनीफ़ तरीन

''जब तर्सील बटन तक पहुँची''

हनीफ़ तरीन

गर्दिश की रक़ाबत से झगड़े के लिए था

हनीफ़ तरीन

बिखर के रेत हुए हैं वो ख़्वाब देखे हैं

हनीफ़ कैफ़ी

वो मुझे सोज़-ए-तमन्ना की तपिश समझा गया

हनीफ़ अख़गर

सेहन-ए-आइंदा को इम्कान से धोए जाएँ

हम्माद नियाज़ी

चोरी की भूक

हमीदा शाहीन

जुदाइयों के तसव्वुर ही से रुलाऊँ उसे

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

हमीं हैं दर-हक़ीक़त अपने क़ारी

हामिद हुसैन हामिद

उस के करम से है न तुम्हारी नज़र से है

हमीद अलमास

कर्ब वहशत उलझनें और इतनी तन्हाई कि बस

हमदुन उसमानी

ज़बाँ के साथ यहाँ ज़ाइक़ा भी रक्खा है

हमदम कशमीरी

काम आसाँ है मगर देखिए दुश्वार भी है

हमदम कशमीरी

गिरेगी कल भी यही धूप और यही शबनम

हकीम मंज़ूर

हो आँख अगर ज़िंदा गुज़रती है न क्या क्या

हकीम मंज़ूर

है इज़्तिराब हर इक रंग को बिखरने का

हकीम मंज़ूर

अब ख़ूब हँसेगा दीवाना

हफ़ीज़ जालंधरी

हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में

हबीब जालिब

दिल-ए-तन्हा में अब एहसास-ए-महरूमी नहीं शायद

हबीब हैदराबादी

ख़ुद पे वो फ़ख़्र-कुनाँ कैसा है

हबाब हाश्मी

उर्दू ज़बाँ

गुलज़ार

डाइरी

गुलज़ार

चम्पई धूप

गुलज़ार

बम धमाका

गुलनाज़ कौसर

याद करने का तुम्हें कोई इरादा भी न था

गुलनार आफ़रीन

दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए

गुलनार आफ़रीन

दिल के दामन में जो सरमाया-ए-अफ़्कार न था

गुहर खैराबादी

सँभल के रहिएगा ग़ुस्से में चल रही है हवा

गोविन्द गुलशन

शादाँ न हो गर मुझ पे कड़ा वक़्त पड़ा है

गोपाल मित्तल

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