धूप Poetry (page 13)
अपनी तलब का नाम डुबोने क्यूँ जाएँ मय-ख़ाने तक
शायर लखनवी
देखते हैं न ठहर जाते हैं
सीमान नवेद
फ़िराक़-मौसम के आसमाँ में उजाड़ तारे जुड़े हुए हैं
सीमाब ज़फ़र
आँगन से ही ख़ुशी के वो लम्हे पलट गए
सीमाब सुल्तानपुरी
मरकज़ पे अपने धूप सिमटती है जिस तरह
सीमाब अकबराबादी
सूरज की तपती धूप ने मारा है इन दिनों
सीमा शर्मा मेरठी
रात दिन आग में पला सूरज
सीमा शर्मा मेरठी
डिकलाइन
सीमा ग़ज़ल
बारिश थी और अब्र था दरिया था और बस
सीमा ग़ज़ल
सरों पे धूप तो आँखों में ख़्वाब पत्थर के
सय्यद सफ़ी हसन
जो भी तख़्त पे आ कर बैठा उस को यज़्दाँ मान लिया
सय्यद नसीर शाह
हर्फ़-ए-आग़ाज़-ए-सदा-ए-कुन-फ़काँ था और मैं
सय्यद नसीर शाह
धरती में भी रेंग रही है ख़ून की इक शिरयान
सय्यद नसीर शाह
संजीदगी की ख़ास ज़रूरत तो है नहीं
सौरभ शेखर
मिला न खेत से उस को भी आब-ओ-दाना क्या
सौरभ शेखर
फ़ज़ा का हब्स चीरती हुई हवा उठे
सौरभ शेखर
इक चराग़-ए-दिल फ़क़त रौशन अगर मेरा भी है
सौरभ शेखर
आसाँ तो न था धूप में सहरा का सफ़र कुछ
सौरभ शेखर
हज़ार टूटे हुए ज़ावियों में बैठी हूँ
सरवत ज़ेहरा
सुब्ह होते ही
सरवत हुसैन
''एक नज़्म कहीं से भी शुरूअ हो सकती है''
सरवत हुसैन
दुश्वार दिन के किनारे
सरवत हुसैन
ये जो फूट बहा है दरिया फिर नहीं होगा
सरवत हुसैन
ये होंट तिरे रेशम ऐसे
सरवत हुसैन
रात बाग़ीचे पे थी और रौशनी पत्थर में थी
सरवत हुसैन
महबूबा के लिए आख़िरी नज़्म
सरमद सहबाई
नज़र की धूप में आने से पहले
सरफ़राज़ ज़ाहिद
नज़र की धूप में आने से पहले
सरफ़राज़ ज़ाहिद
ग़म का सूरज तो डूबता ही नहीं
सरफ़राज़ दानिश
इस से पहले कि सर उतर जाएँ
सरफ़राज़ दानिश
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