देख Poetry (page 77)
हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के
अकबर इलाहाबादी
दिल हो ख़राब दीन पे जो कुछ असर पड़े
अकबर इलाहाबादी
सन्नाटा तूफ़ाँ से सिवा हो ये भी तो हो सकता है
अकबर अली खान अर्शी जादह
कभी ज़ख़्म ज़ख़्म निखर के देख कभी दाग़ दाग़ सँवर के देख
अकबर अली खान अर्शी जादह
सुनी है चाप बहुत वक़्त के गुज़रने की
अजमल सिराज
अलग अलग तासीरें इन की, अश्कों के जो धारे हैं
अजमल सिद्दीक़ी
याद-ए-फ़िराक-ए-यार तिरा शुक्रिया बहुत
अजमल अजमली
महव-ए-हैरत हूँ ख़राश-ए-दस्त-ए-ग़म को देख कर
आजिज़ मातवी
इंसान हादसात से कितना क़रीब है
आजिज़ मातवी
जब कभी मद्द-ए-मुक़ाबिल वो रुख़-ए-ज़ेबा हुआ
आजिज़ मातवी
हंगामा क्यूँ बपा है ज़रा बाम पर से देख
आजिज़ मातवी
दर्द-ए-मुसलसल से आहों में पैदा वो तासीर हुई
आजिज़ मातवी
ख़ाक में मिलना था आख़िर बे-निशाँ होना ही था
अजीत सिंह हसरत
ज़ख़्मों का दो-शाला पहना धूप को सर पर तान लिया
ऐतबार साजिद
मुझे ऐसा लुत्फ़ अता किया कि जो हिज्र था न विसाल था
ऐतबार साजिद
मुहताज हम-सफ़र की मसाफ़त न थी मिरी
ऐतबार साजिद
न छोड़ी ग़म ने मिरे इक जिगर में ख़ून की बूँद
ऐश देहलवी
जो होता आह तिरी आह-ए-बे-असर में असर
ऐश देहलवी
बातें न किस ने हम को कहीं तेरे वास्ते
ऐश देहलवी
हर इक शय पर बहार-ए-ज़िंदगी महसूस करता हूँ
ऐश बर्नी
बे-हुनर देख न सकते थे मगर देखने आए
ऐन ताबिश
पहले तो शहर ऐसा न था
ऐन ताबिश
मुलाक़ातें नहीं फिर भी मुलाक़ातें
ऐन ताबिश
ख़ाकसारी थी कि बिन देखे ही हम ख़ाक हुए
ऐन ताबिश
क्या किसी बात की सज़ा है मुझे
ऐन इरफ़ान
गर्म-ए-सफ़र है गर्म-ए-सफ़र रह मुड़ मुड़ कर मत पीछे देख
अहसन शफ़ीक़
काट गई कोहरे की चादर सर्द हवा की तेज़ी माप
अहसन शफ़ीक़
सो हश्र में लिए दिल-ए-हसरत मआब में
अहसन मारहरवी
संग-ए-दर बन कर भी क्या हसरत मिरे दिल में नहीं
अहसन मारहरवी
क्या ज़रूरत बे-ज़रूरत देखना
अहसन मारहरवी
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