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Collection: देख Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 61 - Darsaal

देख Poetry (page 61)

वो पोशीदा रखते हैं अपना तअ'ल्लुक़

बयान मेरठी

ग़म्ज़ा-ए-मा'शूक़ मुश्ताक़ों को दिखलाती है तेग़

बयान मेरठी

ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा

बयान मेरठी

तुझ को देख रहा हूँ मैं

बासिर सुल्तान काज़मी

दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत

बासिर सुल्तान काज़मी

लड़ ही जाए किसी निगार से आँख

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

तज़्किरे में तिरे इक नाम को यूँ जोड़ दिया

बशीर फ़ारूक़ी

मैं जितनी देर तिरी याद में उदास रहा

बशीर फ़ारूक़ी

तुम अभी शहर में क्या नए आए हो

बशीर बद्र

मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे

बशीर बद्र

सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में

बशीर बद्र

पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है

बशीर बद्र

मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे

बशीर बद्र

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ

बशीर बद्र

कैसी कैसी थीं उन्ही गलियों में ज़ेबा सूरतें

बशीर अहमद बशीर

हर गाम पे आवारगी-ओ-दर-ब-दरी में

बशीर अहमद बशीर

प्यार के बंधन ख़ून के रिश्ते टूट गए ख़्वाबों की तरह

बशर नवाज़

तो ऐसा क्यूँ नहीं करते

बशर नवाज़

क्या क्या लोग ख़ुशी से अपनी बिकने पर तय्यार हुए

बशर नवाज़

जब कभी होंगे तो हम माइल-ए-ग़म ही होंगे

बशर नवाज़

वहशत में भी रुख़ जानिब-ए-सहरा न करेंगे

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

तुम कब थे क़रीब इतने मैं कब दूर रहा हूँ

बाक़ी सिद्दीक़ी

सुब्ह का भेद मिला क्या हम को

बाक़ी सिद्दीक़ी

सैर में तेरी है बुलबुल बोस्ताँ बे-कार है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

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