देख Poetry (page 57)
कहाँ सबात-ए-ग़म-ए-दिल कहाँ सराब-ए-सुकूँ
एजाज़ वारसी
तपती ज़मीं पे पाँव न धर अब भी लौट जा
एजाज़ रही
कुछ देर ठहर और ज़रा देख तमाशा
एजाज़ गुल
अतवार उस के देख के आता नहीं यक़ीं
एजाज़ गुल
पेचाक-ए-उम्र अपने सँवार आइने के साथ
एजाज़ गुल
इतना तिलिस्म याद के चक़माक़ में रहा
एजाज़ गुल
दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर
एजाज़ गुल
तू मर्द-ए-मोमिन है अपनी मंज़िल को आसमानों पे देख नादाँ
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
हुसूल-ए-मक़्सद में आख़िरश यूँ रहेगी क़िस्मत दख़ील कब तक
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
कुछ मिरे शौक़ ने दर-पर्दा कहा हो जैसे
एहतिशाम हुसैन
देख कर जादा-ए-हस्ती पे सुबुक-गाम मुझे
एहतिशाम हुसैन
सुर्ख़ मौसम की कहानी है पुरानी हो न हो
एहतराम इस्लाम
तुम अच्छे मसीहा हो दवा क्यूँ नहीं देते
एहसान जाफ़री
लोग यूँ देख के हँस देते हैं
एहसान दानिश
हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख
एहसान दानिश
यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
एहसान दानिश
सोज़-ए-जुनूँ को दिल की ग़िज़ा कर दिया गया
एहसान दानिश
रंग-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के शनासा हम भी हैं
एहसान दानिश
जब भी ख़ल्वत में वो याद आएगा
एहसान दानिश
इश्क़ को तक़लीद से आज़ाद कर
एहसान दानिश
दिल की रग़बत है जब आप ही की तरफ़
एहसान दानिश
पुर-लुत्फ़ सुकूँ-बख़्श हवाएँ भी बहुत थीं
डॉक्टर आज़म
अक़्ल कितनी शुऊ'र कितना है
डॉक्टर आज़म
आइने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे
दिनेश ठाकुर
साबिक़ वज़ीर
दिलावर फ़िगार
चालीस चोर
दिलावर फ़िगार
या रब मिरे नसीब में अक्ल-ए-हलाल हो
दिलावर फ़िगार
उट्ठी नहीं है शहर से रस्म-ए-वफ़ा अभी
दिलावर फ़िगार
मंज़र से उधर ख़्वाब की पस्पाई से आगे
दिलावर अली आज़र
दूर के एक नज़ारे से निकल कर आई
दिलावर अली आज़र
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