देख Poetry (page 36)
ये रात दिन का बदलना नज़र में रहता है
सादुल्लाह शाह
ये मत भुला कि यहाँ जिस क़दर उजाले हैं
सअादत बाँदवी
दिल में हो गर ख़्वाहिश-ए-तस्वीर-ए-इबरत देखना
सअादत बाँदवी
याद आते हो किस सलीक़े से
रूही कंजाही
तुझ पे हर हाल में मरना चाहूँ
रूही कंजाही
इस शोला-ख़ू की तरह बिगड़ता नहीं कोई
रूही कंजाही
ये एहतियात इश्क़ पे लाज़िम सदा रहे
रोहित सोनी ‘ताबिश’
था निगाहों में बसाया जाने किस तस्वीर को
रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान
कोई ख़्वाब था जो बिखर गया कोई दर्द था जो ठहर गया
रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान
छुपता नहीं छपाने से आलम उभार का
रियाज़ ख़ैराबादी
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
रियाज़ ख़ैराबादी
उन के होते कौन देखे दीदा-ओ-दिल का बिगाड़
रियाज़ ख़ैराबादी
सुब्ह है रात कहाँ अब वो कहाँ रात की बात
रियाज़ ख़ैराबादी
रूठे हुए कि अपने ज़रा अब मनाए ज़ुल्फ़
रियाज़ ख़ैराबादी
पैमाने में वो ज़हर नहीं घोल रहे थे
रियाज़ ख़ैराबादी
मुश्किल उस कूचे से उठना हो गया
रियाज़ ख़ैराबादी
मुँह दिखा कर मुँह छुपाना कुछ नहीं
रियाज़ ख़ैराबादी
मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी
रियाज़ ख़ैराबादी
जो थे हाथ मेहंदी लगाने के क़ाबिल
रियाज़ ख़ैराबादी
गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़रीब हम हैं ग़रीबों की भी ख़ुशी हो जाए
रियाज़ ख़ैराबादी
आईना देखते ही वो दीवाना हो गया
रियाज़ ख़ैराबादी
सर-ए-राह इक हादिसा हो गया
ऋषि पटियालवी
उदास देख के मुझ को चमन दिखाता है
रिन्द लखनवी
चाँदनी रातों में चिल्लाता फिरा
रिन्द लखनवी
बरहना देख कर आशिक़ में जान-ए-ताज़ा आती है
रिन्द लखनवी
आदमी पहचाना जाता है क़याफ़ा देख कर
रिन्द लखनवी
ज़माने में वो मह-लक़ा एक है
रिन्द लखनवी
वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके
रिन्द लखनवी
तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना
रिन्द लखनवी
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