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Collection: देख Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 31 - Darsaal

देख Poetry (page 31)

लय मोहब्बत की है आहंग सुख़न-साज़ का है

सलीम कौसर

चश्म बे-ख़्वाब हुई शहर की वीरानी से

सलीम कौसर

आख़िरी पड़ाव

सलीम फ़िगार

अँधेरे को निगलता जा रहा हूँ

सलीम फ़िगार

बहुत क़रीब से कुछ भी न देख पाओगे

सलीम फ़ौज़

सुकूत बढ़ने लगा है सदा ज़रूरी है

सलीम फ़ौज़

ये ख़याल अब तो दिल-आज़ार हमारे लिए है

सलीम फ़राज़

हर-चंद तिरे ग़म का सहारा भी नहीं है

सलीम फ़राज़

ख़ुद अपने अक्स को हैरत से देखता हूँ मैं

सलीम बेताब

पागल

सलीम अहमद

नींद से पहले

सलीम अहमद

ये ख़्वाब और भी देखेंगे रात बाक़ी है

सलीम अहमद

मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर

सलीम अहमद

ख़ैर का तुझ को यक़ीं है और उस को शर का है

सलीम अहमद

जो आँखों के तक़ाज़े हैं वो नज़्ज़ारे बनाता हूँ

सलीम अहमद

दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए

सलीम अहमद

बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे

सलीम अहमद

अहल-ए-दिल ने इश्क़ में चाहा था जैसा हो गया

सलीम अहमद

आज तो नहीं मिलता ओर-छोर दरिया का

सलीम अहमद

आ के अब जंगल में ये उक़्दा खुला

सलीम अहमद

सड़क बन रही है

सलाम मछली शहरी

गुरेज़

सलाम मछली शहरी

बहुत दिनों की बात है....

सलाम मछली शहरी

इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़

सख़ी लख़नवी

बहार आ कर जो गुलशन में वो गाएँ

सख़ी लख़नवी

टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर

सज्जाद बाक़र रिज़वी

शहर के आबाद सन्नाटों की वहशत देख कर

सज्जाद बाक़र रिज़वी

फेरी वाला

सज्जाद बाक़र रिज़वी

दीवार क़हक़हा

सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो घिर के आया घटाओं की तीरगी की तरह

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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