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Collection: देख Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 22 - Darsaal

देख Poetry (page 22)

अन-कही

शहज़ाद अहमद

यूँ ख़ाक की मानिंद न राहों पे बिखर जा

शहज़ाद अहमद

ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े

शहज़ाद अहमद

वो मिरे पास है क्या पास बुलाऊँ उस को

शहज़ाद अहमद

सूरज की किरन देख के बेज़ार हुए हो

शहज़ाद अहमद

न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे

शहज़ाद अहमद

मैं कि ख़ुश होता था दरिया की रवानी देख कर

शहज़ाद अहमद

लगे थे ग़म तुझे किस उम्र में ज़माने के

शहज़ाद अहमद

खिले जो फूल तो मुँह छुप गया सितारों का

शहज़ाद अहमद

ख़ल्क़ ने छीन ली मुझ से मिरी तन्हाई तक

शहज़ाद अहमद

जो शजर सूख गया है वो हरा कैसे हो

शहज़ाद अहमद

जिस ने तिरी आँखों में शरारत नहीं देखी

शहज़ाद अहमद

इस दोशीज़ा मिट्टी पर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा कोई भी नहीं

शहज़ाद अहमद

घर जला लेता है ख़ुद अपने ही अनवार से तू

शहज़ाद अहमद

दिल से ये कह रहा हूँ ज़रा और देख ले

शहज़ाद अहमद

दिल बहुत मसरूफ़ था कल आज बे-कारों में है

शहज़ाद अहमद

चराग़ ख़ुद ही बुझाया बुझा के छोड़ दिया

शहज़ाद अहमद

बाग़-ए-बहिश्त के मकीं कहते हैं मर्हबा मुझे

शहज़ाद अहमद

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है

शहज़ाद अहमद

अब न वो शोर न वो शोर मचाने वाले

शहज़ाद अहमद

न ख़ुश-गुमान हो इस पर तू ऐ दिल-ए-सादा

शहरयार

लोग सर फोड़ कर भी देख चुके

शहरयार

क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में

शहरयार

जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने

शहरयार

आँखों में तेरी देख रहा हूँ मैं अपनी शक्ल

शहरयार

तम्बीह

शहरयार

सैगंधी

शहरयार

मेरी ज़मीं

शहरयार

वो बेवफ़ा है हमेशा ही दिल दुखाता है

शहरयार

तमाम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा देख के ये हैराँ है

शहरयार

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