दस्तक Poetry
पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था
फ़रह शाहिद
बंद हथेली में हैं सब
बीना गोइंदी
पेड़ों की घनी छाँव और चैत की हिद्दत थी
ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश
बैठे-बैठे इक दम से चौंकाती है
ज़ुबैर अली ताबिश
ये आँसू नहीं
ज़ीशान साहिल
उस शाम को जब रूठ के में घर से चला था
ज़मीर काज़मी
नूर ये किस का बसा है मुझ में
ज़की तारिक़
इन्फ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी
ज़ाहिद मसूद
कुछ यक़ीं रहने दिया कुछ वाहिमा रहने दिया
ज़ाहिद अाफ़ाक
ख़्वाब-गाहों से अज़ान-ए-फ़ज्र टकराती रही
ज़हीर सिद्दीक़ी
कोई दस्तक कोई आहट न शनासा आवाज़
ज़हीर काश्मीरी
अब है क्या लाख बदल चश्म-ए-गुरेज़ाँ की तरह
ज़हीर काश्मीरी
घर से निकाले पाँव तो रस्ते सिमट गए
ज़फ़र कलीम
मैं ही दस्तक देने वाला मैं ही दस्तक सुनने वाला
ज़फर इमाम
बरसों बअ'द जो देखा उस को सर पर उलझा जोड़ा था
यूसुफ़ तक़ी
नज़रों में कहाँ उस की वो पहला सा रहा मैं
याक़ूब आमिर
कोई दस्तक कोई आहट न सदा है कोई
वसीम मलिक
हम-सफ़र तू ने परों को जो मिरे काटा है
वसीम मलिक
खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं
वसीम बरेलवी
फ़स्ल-ए-गुल में नईं बघूले उठते वीरानों के बीच
वली उज़लत
कई भयानक काली रातों के अँधियारे में
वहाब दानिश
हम ने अपने आप से जब बात की
विश्वनाथ दर्द
दर पे तेरे जो सर झुका लूँगा
विजय शर्मा अर्श
तेरी यादों की कहानी तो नहीं है 'तनवीर'
तनवीर अहमद अल्वी
दिल है पलकों में सिमट आता है आँसू की तरह
तनवीर अहमद अल्वी
बात कुछ यूँ है कि ये ख़ौफ़ का मंज़र तो नहीं
तन्हा तिम्मापुरी
ज़ख़्म कब का था दर्द उठा है अब
ताजदार आदिल
फिर उस की याद ने दस्तक दिल-ए-हज़ीं पर दी
तहसीन फ़िराक़ी
तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए
तहसीन फ़िराक़ी
जब मिरे होंटों पे मेरी तिश्नगी रह जाएगी
ताहिर फ़राज़
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