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Collection: दश्त Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 7 - Darsaal

दश्त Poetry (page 7)

रऊनतों में न इतनी भी इंतिहा हो जाए

सय्यद अारिफ़

तसलसुल पाएमाली का मिलेगा

सय्यद अमीन अशरफ़

मलाल-ए-ग़ुंचा-ए-तर जाएगा कभी न कभी

सय्यद अमीन अशरफ़

ख़िरद ऐ बे-ख़बर कुछ भी नहीं है

सय्यद अमीन अशरफ़

वो दश्त-ए-तीरगी है कि कोई सदा न दे

सय्यद अहमद शमीम

ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था

सय्यद आबिद अली आबिद

हाए वो याद कहाँ है कि ख़ुदा ख़ैर करे

सुनील कुमार जश्न

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

वहशत-ए-दस्त-ओ-गरेबाँ न तुझे है न मुझे

सुल्तान गौरी

तन्हाई की ख़लीज है यूँ दरमियान में

सुल्तान अख़्तर

बीमार सा है जिस्म-ए-सहर काँप रहा है

सुलेमान ख़ुमार

जो तेरे हुस्न में नर्मी भी बाँकपन भी है

सुलैमान अरीब

तुझे क्या हुआ है बता ऐ दिल न सुकून है न क़रार है

सुलैमान अहमद मानी

नहीं इस दश्त में कोई ख़िज़र है

सुलैमान अहमद मानी

हमारे जैसे ही लोगों से शहर भर गए हैं

सुहैल अख़्तर

तमन्ना दिल में घर करती बहुत है

सुहैल अहमद ज़ैदी

कुछ दफ़्न है और साँस लिए जाता है

सुहैल अहमद ज़ैदी

कुछ दफ़्न है और साँस लिए जाता है

सुहैल अहमद ज़ैदी

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

मिटी मिटी हुई यादों के दाग़ क्या जलते?

सूफ़ी तबस्सुम

इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई

सूफ़ी तबस्सुम

सुलगते दश्त का मंज़र हुई हैं

सिया सचदेव

ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीन-ए-यार क़हरी है

सिराज औरंगाबादी

सनम ख़ुश तबईयाँ सीखे हो तुम किन किन ज़रीफ़ों सीं

सिराज औरंगाबादी

दिलदार की कशिश ने ऐंचा है मन हमारा

सिराज औरंगाबादी

दिल में ख़यालात-ए-रंगीं गुज़रते हैं जिऊँ बॉस फूलों के रंगों में रहिए

सिराज औरंगाबादी

शरीक-ए-ग़म कोई कब मो'तबर निकलता है

सिद्दीक़ मुजीबी

न कोई नक़्श न पैकर सराब चारों तरफ़

सिद्दीक़ मुजीबी

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