दश्त Poetry (page 30)
मैं अपने आप से इक खेल करने वाला हूँ
आज़ाद गुलाटी
इस क़दर ग़म है कि इज़हार नहीं कर सकते
अय्यूब ख़ावर
उस निगाह-ए-नाज़ ने यूँ रात-भर तज्सीम की
औरंगज़ेब
इस दश्त नवर्दी में जीना बहुत आसाँ था
अतीक़ुल्लाह
गरचे मैं सर से पैर तलक नोक-ए-संग था
अतीक़ुल्लाह
दुनिया से हुए बैठे हो रू-पोश ऐ जाना
आतिफ़ ख़ान
यही बहुत है कि अहबाब पूछ लेते हैं
अतहर नासिक
गूँगों को ज़बान किस ने दी है
अतहर नासिक
लम्हों के अज़ाब सह रहा हूँ
अतहर नफ़ीस
क्या वक़्त पड़ा है तिरे आशुफ़्ता-सरों पर
अतहर नफ़ीस
दिल की मसर्रतें नई जाँ का मलाल है नया
अतहर नफ़ीस
मैं अपनी ख़ाक को जब आइना बनाता हूँ
अतीक़ अहमद
तिरी आँखों में इक मुबहम फ़साना ढूँढ ही लेगा
अताउर्रहमान जमील
वो दश्त-ए-कर्ब-ओ-बला में उतरने देता नहीं
अताउल हक़ क़ासमी
क्या क्या न प्यास जागे मिरे दिल के दश्त में
अता तुराब
तन्हाइयों के दश्त में भागे जो रात भर
अता तुराब
यक लम्हा सही उम्र का अरमान ही रह जाए
अता शाद
वतन-आशोब
असरार-उल-हक़ मजाज़
तिफ़्ली के ख़्वाब
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्र-ए-अलीगढ़
असरार-उल-हक़ मजाज़
पहचान ज़िंदगी की समझ कर मैं चुप रहा
असरार अकबराबादी
मैं तिरे शहर में फिरती रही मारी मारी
असरा रिज़वी
नए पैकर नए साँचे में ढलना चाहता हूँ मैं
असलम महमूद
ऐ मिरे ग़ुबार-ए-सर तू ही तो नहीं तन्हा राएगाँ तो मैं भी हूँ
असलम महमूद
वही ख़्वाबीदा ख़ामोशी वही तारीक तन्हाई
असलम कोलसरी
दिल-ए-पुर-ख़ूँ को यादों से उलझता छोड़ देते हैं
असलम कोलसरी
न दश्त ओ दर से अलग था न जंगलों से जुदा
असलम आज़ाद
वो क्या है कौन है ये तो ज़रा बता मुझ को
असलम आज़ाद
बस एक बार उसे रौशनी में देखा था
असलम आज़ाद
एक नज़्म
असलम अंसारी
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