दश्त Poetry (page 28)
सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था
बयान मेरठी
ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स
बयान मेरठी
हर-चंद मेरे हाल से वो बे-ख़बर नहीं
बासिर सुल्तान काज़मी
ज़ख़्म खा के ख़ंदाँ हैं पैरहन-दरीदा हम
बशीर मुंज़िर
मिस्ल-ए-नमरूद हर इक शख़्स ख़ुदाई माँगे
बशीर मुंज़िर
हर गाम पे आवारगी-ओ-दर-ब-दरी में
बशीर अहमद बशीर
इक बे-सबात अक्स बना बे-निशाँ गया
बशीर अहमद बशीर
ऐसा तह-ए-अफ़्लाक ख़राबा नहीं कोई
बशीर अहमद बशीर
कोई सनम तो हो कोई अपना ख़ुदा तो हो
बशर नवाज़
छेड़ा ज़रा सबा ने तो गुलनार हो गए
बशर नवाज़
रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया
बाक़ी सिद्दीक़ी
ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गाँव में
बाक़ी सिद्दीक़ी
अश्क मेरे हैं मगर दीदा-ए-नम है उस का
बाक़र मेहदी
एक उलझन रात दिन पलती रही दिल में कि हम
बक़ा बलूच
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
बक़ा बलूच
पाँव मेरा फिर पड़ा है दश्त में
बलवान सिंह आज़र
आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त
बलवान सिंह आज़र
चुटकियाँ लेती है गोयाई किसे आवाज़ दूँ
बलराज हयात
घर भी वीराना लगे ताज़ा हवाओं के बग़ैर
बख़्श लाइलपूरी
रुत न बदले तो भी अफ़्सुर्दा शजर लगता है
बख़्श लाइलपूरी
दीदा-ए-बे-रंग में ख़ूँ-रंग मंज़र रख दिए
बख़्श लाइलपूरी
हम न बुत-ख़ाने में ने मस्जिद-ए-वीराँ में रहे
बहराम जी
वाक़िफ़ हैं हम कि हज़रत-ए-ग़म ऐसे शख़्स हैं
ज़फ़र
करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे
ज़फ़र
जो झुक के मिलते थे जलसों में मेहरबाँ की तरह
बदनाम नज़र
ख़ाक उड़ाते हुए ये म'अरका सर करना है
अज़्म शाकरी
अगर दश्त-ए-तलब से दश्त-ए-इम्कानी में आ जाते
अज़्म शाकरी
मुझे कल अचानक ख़याल आ गया आसमाँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद
जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी
अज़्म बहज़ाद
शहर हो दश्त-ए-तमन्ना हो कि दरिया का सफ़र
अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी
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