दश्त Poetry (page 11)
ये इक शजर कि जिस पे न काँटा न फूल है
शहरयार
मोम के जिस्मों वाली इस मख़्लूक़ को रुस्वा मत करना
शहरयार
मा'बद-ए-ज़ीस्त में बुत की मिसाल जड़े होंगे
शहरयार
हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है
शहरयार
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
शहरयार
बे-ताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हम को
शहरयार
ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं
शहरयार
आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए
शहरयार
याद की बस्ती का यूँ तो हर मकाँ ख़ाली हुआ
शहराम सर्मदी
ख़ला सा ठहरा हुआ है ये चार-सू कैसा
शहराम सर्मदी
ज़िंदगी में यूँ तो हर इक हादिसा नागाह था
शहनाज़ नबी
संग-ज़नों के वास्ते फिर नए रास्तों में है
शाहिदा तबस्सुम
मैं ज़हर रही हर शाम रही
शाहिदा तबस्सुम
सराब-ए-शब भी है ख़्वाब-ए-शिकस्ता-पा भी है
शाहिदा हसन
चराग़-ए-शाम ही तन्हा नहीं है
शाहिदा हसन
मैं अपने हिस्से की तन्हाई महफ़िल से निकालूँगा
शाहिद ज़की
हाशिए पर कुछ हक़ीक़त कुछ फ़साना ख़्वाब का
शाहिद माहुली
बाम-ओ-दर टूट गए बह गया पानी कितना
शाहिद माहुली
कूचा-ए-संग-ए-मलामत के सब आसार के साथ
शाहिद कमाल
ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला
शाहिद कमाल
ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला
शाहिद कमाल
इस अरसा-ए-महशर से गुज़र क्यूँ नहीं जाते
शाहिद कमाल
हमें ख़बर भी नहीं यार खींचता है कोई
शाहिद कमाल
फ़िक्र-ए-ईजाद में हूँ खोल नया दर कोई
शाहिद कमाल
अपनी तन्हाई का सामान उठा लाए हैं
शाहिद कमाल
ऐ निगार-ए-ग़म-ओ-आलाम तिरी उम्र दराज़
शाहिद अहमद शोएब
ऐ निगार-ए-ग़म-ओ-आलाम तिरी उम्र दराज़
शाहिद अहमद शोएब
हम पे जिस तौर भी तुम चाहो नज़र कर देखो
शाहीन ग़ाज़ीपुरी
दर-ए-इम्काँ से गुज़र कर सर-ए-मंज़र आ कर
शाहीन अब्बास
यादों की दीवार गिराता रहता हूँ
शाहबाज़ रिज़्वी
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