दश्त Poetry (page 10)
कहाँ रुकेंगे मुसाफ़िर नए ज़मानों के
शकेब जलाली
जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है
शकेब जलाली
इस ख़ाक-दाँ में अब तक बाक़ी हैं कुछ शरर से
शकेब जलाली
बुझे बुझे से शरारे मुझे क़ुबूल नहीं
शकेब जलाली
आया है हर चढ़ाई के बा'द इक उतार भी
शकेब जलाली
लगा लिया था गले उस ने बा-वफ़ा कह कर
शकेब अयाज़
ख़ाक से उठना ख़ाक में सोना ख़ाक को बंदा भूल गया
शाइस्ता मुफ़्ती
तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
सनम के देख कर लब और दहन सुर्ख़
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ने शिकवा-मंद दिल से न अज़-दस्त-दीदा हूँ
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
जो मय-ख़ाने में जाता था क़दम रखते झिझकता था
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
जिस ने आदम के तईं जाँ बख़्शा
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
इस दश्त की वुसअत में सिमट कर नहीं देखा
शहज़ाद क़मर
देख इन आँखों से क्या जल-थल कर रक्खा है
शहज़ाद क़मर
रदीफ़ क़ाफ़िया बंदिश ख़याल लफ़्ज़-गरी
शहज़ाद क़ैस
कभी कभी छलक उठता है आब ओ रंग उन का
शहज़ाद अहमद
रूह की आग
शहज़ाद अहमद
यूँ ख़ाक की मानिंद न राहों पे बिखर जा
शहज़ाद अहमद
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
शहज़ाद अहमद
तिरी तलाश तो क्या तेरी आस भी न रहे
शहज़ाद अहमद
न बस्तियों को अज़ीज़ रक्खें न हम बयाबाँ से लौ लगाएँ
शहज़ाद अहमद
मुंतज़िर दश्त-ए-दिल-ओ-जाँ है कि आहू आए
शहज़ाद अहमद
ख़ल्क़ ने छीन ली मुझ से मिरी तन्हाई तक
शहज़ाद अहमद
जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुस्वाई
शहज़ाद अहमद
जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया
शहज़ाद अहमद
हिज्र की रात मिरी जाँ पे बनी हो जैसे
शहज़ाद अहमद
बाग़ का बाग़ उजड़ गया कोई कहो पुकार कर
शहज़ाद अहमद
रतजगों का ज़वाल
शहरयार
मेरी ज़मीं
शहरयार
एक ख़ुश-ख़बरी
शहरयार
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