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Collection: नदी Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 32 - Darsaal

नदी Poetry (page 32)

तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख

गुहर खैराबादी

मैं ग़र्क़ वहाँ प्यास के पैकर की तरह था

गुहर खैराबादी

जिस तरफ़ भी देखिए साया नहीं

गुहर खैराबादी

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

शेर जब खुलता है खुलते हैं मआनी क्या क्या

गोविन्द गुलशन

मेरा साक़ी है बड़ा दरिया-दिल

गोपाल मित्तल

अपने अंजाम से डरता हूँ मैं

गोपाल मित्तल

आते ही जवानी के ली हुस्न ने अंगड़ाई

गोपाल कृष्णा शफ़क़

आँखों में नए रंग सजाने नहीं उतरे

गिरिजा व्यास

जो उस तरफ़ से इशारा कभी किया उस ने

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

एक दिन दरिया मकानों में घुसा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

चाहता है वो कि दरिया सूख जाए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ऐ मिरे पायाब दरिया तुझ को ले कर क्या करूँ

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

राह से मुझ को हटा कर ले गया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

नहीं है बहर-ओ-बर में ऐसा मेरे यार कोई

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मुझे ग़ुबार उड़ाता हुआ सवार लगा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मिरी सिफ़ात का जब उस ने ए'तिराफ़ किया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

झलकती है मिरी आँखों में बेदारी सी कोई

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सीना मदफ़न बन जाता है जीते जागते राज़ों का

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बग़ैर उस के अब आराम भी नहीं आता

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले

ग़ुलाम मौला क़लक़

मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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