दर्द Poetry (page 76)
दिल की आरज़ू थी दर्द दर्द-ए-बे-दवा पाया
अली अख़्तर अख़्तर
उठेंगे मौत से पहले
अली अकबर नातिक़
ऐ शाएर! तेरा दर्द बड़ा ऐ शाएर! तेरी सोच बड़ी
अली अकबर अब्बास
मैं अपने वक़्त में अपनी रिदा में रहता हूँ
अली अकबर अब्बास
कभी सर पे चढ़े कभी सर से गुज़रे कभी पाँव आन गिरे दरिया
अली अकबर अब्बास
ग़म से मंसूब करूँ दर्द का रिश्ता दे दूँ
अली अहमद जलीली
ग़म से मंसूब करूँ दर्द का रिश्ता दे दूँ
अली अहमद जलीली
तिरे चाँद जैसे रुख़ पर ये निशान-ए-दर्द क्यूँ हैं
अलीम उस्मानी
गर्दिश-ए-मय का इस पर न होगा असर मस्त आँखों का जादू जिसे याद है
अलीम उस्मानी
देती हैं थपकियाँ तिरी परछाइयाँ मुझे
अलीम उस्मानी
हर मोड़ पे सफ़र था अजब बोलने न पाए
अलीम सबा नवेदी
मेरे सुकून-ए-क़ल्ब को ले कर चले गए
अलीम अख़्तर
वो क्या गए पयाम-ए-सफ़र दे गए मुझे
अलीम अख़्तर
किसी के वादा-ए-फ़र्दा पर ए'तिबार तो है
अलीम अख़्तर
चले थे भर के रेत जब सफ़र की जिस्म-ओ-जाँ में हम
अलीम अफ़सर
मैं अपनी जंग में तन-ए-तन्हा शरीक था
आलमताब तिश्ना
आइना-ख़ाना भी अंदोह-ए-तमन्ना निकला
आलमताब तिश्ना
थपक थपक के जिन्हें हम सुलाते रहते हैं
आलम ख़ुर्शीद
मैं नहीं हूँ नहीं कहीं भी नहीं
अकरम नक़्क़ाश
अब दिल भी दुखाओ तो अज़िय्यत नहीं होती
अकरम महमूद
हिज्र की शाम से ज़ख़्मों के दोशाले माँगूँ
अकमल इमाम
गुज़रते दौड़ते लम्हे हिसाब में लिखिए
अकमल इमाम
सब्ज़ा-ए-बेगाना
अख़्तर-उल-ईमान
मताअ-ए-राएगाँ
अख़्तर-उल-ईमान
काले सफ़ेद परों वाला परिंदा और मेरी एक शाम
अख़्तर-उल-ईमान
एक एहसास
अख़्तर-उल-ईमान
बिंत-ए-लम्हात
अख़्तर-उल-ईमान
अहद-ए-वफ़ा का क़र्ज़ अदा कर दिया गया
अख़्तर ज़ियाई
शाम
अख़्तर उस्मान
तू ने एक उम्र के बाद पूछा है हाल-ए-दिल
अख्तर शुमार
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