दर्द Poetry (page 70)
चिराग़-ए-दर्द कि शम-ए-तरब पुकारती है
अरशद अब्दुल हमीद
वक़्त का झोंका जो सब पत्ते उड़ा कर ले गया
अर्श सिद्दीक़ी
हैराँ हूँ कि ये कौन सा दस्तूर-ए-वफ़ा है
अर्श सिद्दीक़ी
ग़म की गर्मी से दिल पिघलते रहे
अर्श सिद्दीक़ी
दरवाज़ा तिरे शहर का वा चाहिए मुझ को
अर्श सिद्दीक़ी
आँखों में कहीं उस के भी तूफ़ाँ तो नहीं था
अर्श सिद्दीक़ी
ये आइना था मगर ग़म की रहगुज़ार में था
अर्श सहबाई
मेरे प्यारे वतन
अर्श मलसियानी
पहला सा वो जुनून-ए-मोहब्बत नहीं रहा
अर्श मलसियानी
मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है
अर्श मलसियानी
गिरते उभरते डूबते धारे से कट गया
अरमान नज्मी
ये शहर है वो शहर कि जिस में हैं बे-वज्ह कामयाब चेहरे
अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ
ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं
आरिफ़ अब्दुल मतीन
या ख़ुदा कुछ तो दर्द कम कर दे
आराधना प्रसाद
भूलने वाले तुझे याद किया है बरसों
अनवापुल हसन अनवार
कहाँ मुमकिन है पोशीदा ग़म-ए-दिल का असर होना
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
क्या शहर में है गर्मी-ए-बाज़ार के सिवा
अनवर सिद्दीक़ी
ज़हर की चुटकी ही मिल जाए बराए दर्द-ए-दिल
अनवर शऊर
रंगीं बना के दामन-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर को मैं
अनवर सहारनपुरी
जब फ़स्ल-ए-बहाराँ आती है शादाब गुलिस्ताँ होते हैं
अनवर सहारनपुरी
सियाहियों का नगर रौशनी से अट जाए
अनवर सदीद
कुछ अबरुओं पे बल भी हैं ख़ंदा-लबी के साथ
अनवर साबरी
दौर-ए-हाज़िर हो गया है इस क़दर कम-आश्ना
अनवर साबरी
यहाँ काँप जाते हैं फ़लसफ़े ये बड़ा अजीब मक़ाम है
अनवर मिर्ज़ापुरी
मैं तो समझा था जिस वक़्त मुझ को वो मिलेंगे तो जन्नत मिलेगी
अनवर मिर्ज़ापुरी
पलकों के सितारे भी उड़ा ले गई 'अनवर'
अनवर मसूद
सर-दर्द में गोली ये बड़ी ज़ूद-असर है
अनवर मसूद
पढ़ने भी न पाए थे कि वो मिट भी गई थी
अनवर मसूद
पढ़ने भी न पाए थे कि वो मिट भी गई थी
अनवर मसूद
क्यूँ किसी और को दुख दर्द सुनाऊँ अपने
अनवर मसूद
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