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Collection: दर्द Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 69 - Darsaal

दर्द Poetry (page 69)

तक़दीर पे शाकिर रह कर भी ये कौन कहे तदबीर न कर

आरज़ू लखनवी

मीर-ए-महफ़िल न हुए गर्मी-ए-महफ़िल तो हुए

आरज़ू लखनवी

जो बुत है यहाँ अपनी जा एक ही है

आरज़ू लखनवी

हम आज खाएँगे इक तीर इम्तिहाँ के लिए

आरज़ू लखनवी

गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया

आरज़ू लखनवी

दिल में याद-ए-बुत-ए-बे-पीर लिए बैठा हूँ

आरज़ू लखनवी

देखें महशर में उन से क्या ठहरे

आरज़ू लखनवी

दिल की बाज़ी लगा के देख लिया

अरुण कुमार आर्य

चोट दिल पर लगे और आह ज़बाँ से निकले

अरुण कुमार आर्य

बहुत अज़ीज़ न क्यूँ हो कि दर्द है तेरा

अर्शी भोपाली

यक़ीन-ए-सुब्ह-ए-चमन है कितना शुऊर-ए-अब्र-ए-बहार क्या है

अर्शी भोपाली

तमाम हुस्न-ए-जहाँ का जवाब हो के रहा

अर्शी भोपाली

निगाह-ए-शौक़ से कब तक मुक़ाबला करते

अर्शी भोपाली

निगाह तेज़ शुऊ'र-ए-बुलंद रखते हैं

अर्शी भोपाली

मता-ए-शौक़ तो है दर्द-ए-रोज़गार तो है

अर्शी भोपाली

वो जिस ने मेरे दिल ओ जाँ में दर्द बोया है

अरशद सिद्दीक़ी

हम जुनूँ पेशा कि रहते थे तिरी ज़ात में गुम

अरशद महमूद नाशाद

सच की ख़ातिर सब कुछ खोया कौन लिखेगा

अरशद कमाल

कुछ तो मिल जाए कहीं दीदा-ए-पुर-नम के सिवा

अरशद कमाल

क्या कहूँ कितना फ़ुज़ूँ है तेरे दीवाने का दुख

अरशद जमाल 'सारिम'

उस का अंजाम भला हो कि बुरा हो कुछ हो

अरशद जमाल हश्मी

सोते हैं फैल फैल के सारे पलंग पर

अरशद अली ख़ान क़लक़

रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का

अरशद अली ख़ान क़लक़

पिन्हाँ था ख़ुश-निगाहों की दीदार का मरज़

अरशद अली ख़ान क़लक़

इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली

अरशद अली ख़ान क़लक़

दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है

अरशद अली ख़ान क़लक़

ज़मीं के पास किसी दर्द का इलाज नहीं

अरशद अब्दुल हमीद

मिरा ही सीना कुशादा है चाहतों के तईं

अरशद अब्दुल हमीद

सुख़न के चाक में पिन्हाँ तुम्हारी चाहत है

अरशद अब्दुल हमीद

फ़सील-ए-सब्र में रौज़न बनाना चाहती है

अरशद अब्दुल हमीद

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