दर्द Poetry (page 66)
ढला जो दिन तो गया नूर-ए-आफ़्ताब भी साथ
अता हुसैन कलीम
जागते ही नज़र अख़बार में खो जाती है
अता आबिदी
शरारे
असरार-उल-हक़ मजाज़
सानेहा
असरार-उल-हक़ मजाज़
नूरा
असरार-उल-हक़ मजाज़
मुझे जाना है इक दिन
असरार-उल-हक़ मजाज़
मजबूरियाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
इशरत-ए-तन्हाई
असरार-उल-हक़ मजाज़
गुरेज़
असरार-उल-हक़ मजाज़
ए'तिराफ़
असरार-उल-हक़ मजाज़
आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
यूँही बैठे रहो बस दर्द-ए-दिल से बे-ख़बर हो कर
असरार-उल-हक़ मजाज़
रह-ए-शौक़ से अब हटा चाहता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
अक़्ल की सतह से कुछ और उभर जाना था
असरार-उल-हक़ मजाज़
आशिक़ी जाँ-फ़ज़ा भी होती है
असरार-उल-हक़ मजाज़
ठहरे तो कहाँ ठहरे आख़िर मिरी बीनाई
असरारुल हक़ असरार
कैसे रफ़ू हों चाक-ए-गरेबाँ मैं भी सोचूँ तू भी सोच
असरारुल हक़ असरार
जानते थे ग़म तिरा दरिया भी था गहरा भी था
असरारुल हक़ असरार
सुलग रहा हूँ ख़ुद अपनी ही आग में कब से
असरार ज़ैदी
मसरूफ़ हम भी अंजुमन-आराइयों में थे
असरार ज़ैदी
बरहनगी का मुदावा कोई लिबास न था
असरार ज़ैदी
दिल्ली दर्शन
असरार जामई
ख़्वाब इक जज़ीरा है
असरा रिज़वी
ज़िंदगी उलझी है बिखरे हुए गेसू की तरह
असरा रिज़वी
वो शख़्स फिर कहानी का उन्वान बन गया
असरा रिज़वी
ऐसा ये दर्द है कि भुलाया न जाएगा
असरा रिज़वी
वो दर्द हूँ कोई चारा नहीं है जिस का कहीं
असलम महमूद
तू अपने शहर-ए-तरब से न पूछ हाल मिरा
असलम महमूद
सुबुक सा दर्द था उठता रहा जो ज़ख़्मों से
असलम हबीब
ये हिकायत तमाम को पहुँची
असलम फ़र्रुख़ी
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