दर्द Poetry (page 51)
तमाम अजनबी चेहरे सजे हैं चारों तरफ़
फ़िराक़ जलालपुरी
उसी की शरह है ये उठते दर्द का आलम
फ़िराक़ गोरखपुरी
किस लिए कम नहीं है दर्द-ए-फ़िराक़
फ़िराक़ गोरखपुरी
'फ़िराक़' दौड़ गई रूह सी ज़माने में
फ़िराक़ गोरखपुरी
शाम-ए-अयादत
फ़िराक़ गोरखपुरी
परछाइयाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
जुगनू
फ़िराक़ गोरखपुरी
जुदाई
फ़िराक़ गोरखपुरी
हिण्डोला
फ़िराक़ गोरखपुरी
ज़िंदगी दर्द की कहानी है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है
फ़िराक़ गोरखपुरी
सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात
फ़िराक़ गोरखपुरी
समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है
फ़िराक़ गोरखपुरी
निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या
फ़िराक़ गोरखपुरी
नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले
फ़िराक़ गोरखपुरी
कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम
फ़िराक़ गोरखपुरी
कोई पैग़ाम-ए-मोहब्बत लब-ए-एजाज़ तो दे
फ़िराक़ गोरखपुरी
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में
फ़िराक़ गोरखपुरी
जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है
फ़िराक़ गोरखपुरी
इश्क़ की मायूसियों में सोज़-ए-पिन्हाँ कुछ नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया
फ़िराक़ गोरखपुरी
हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ है
फ़िराक़ गोरखपुरी
दौर-ए-आग़ाज़-ए-जफ़ा दिल का सहारा निकला
फ़िराक़ गोरखपुरी
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की
फ़िराक़ गोरखपुरी
अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है
फ़िराक़ गोरखपुरी
हैं ये जज़्बात मिरे दर्द भरे दिल के फ़िगार
फ़िगार उन्नावी
तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने
फ़िगार उन्नावी
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