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Collection: दर्द Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 36 - Darsaal

दर्द Poetry (page 36)

तन्हाइयों के दर्द से रिसता हुआ लहू

रशीद अफ़रोज़

यूँ गँवाता है कोई जान-ए-अज़ीज़

रसा चुग़ताई

मैं ने सोचा था इस अजनबी शहर में ज़िंदगी चलते-फिरते गुज़र जाएगी

रसा चुग़ताई

हर इक दरवेश का क़िस्सा अलग है

रसा चुग़ताई

सौदा-ए-सज्दा शाम-ओ-सहर मेरे सर में है

रंजूर अज़ीमाबादी

कभी ग़ुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह

राना सहरी

कितने ख़्वाब समेटे कोई कितने दर्द कमाएगा

राना आमिर लियाक़त

कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर

राना आमिर लियाक़त

कुछ इस अदा से सफ़ीरान-ए-नौ-बहार चले

रम्ज़ अज़ीमाबादी

न आँखें सुर्ख़ रखते हैं न चेहरे ज़र्द रखते हैं

राम रियाज़

मुझे कैफ़-ए-हिज्र अज़ीज़ है तू ज़र-ए-विसाल समेट ले

राम रियाज़

ये घनी छाँव ये ठंडक ये दिल-ओ-जाँ का सुकूँ

राम कृष्ण मुज़्तर

फिर कोई ख़लिश नज़्द-ए-राग-ए-जाँ तो नहीं है

राम कृष्ण मुज़्तर

मेरे तसव्वुरात में अब कोई दूसरा नहीं

राम कृष्ण मुज़्तर

मसअला ये भी ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ आसाँ हो गया

राम कृष्ण मुज़्तर

क्या ग़ज़ब है कि मुलाक़ात का इम्काँ भी नहीं

राम कृष्ण मुज़्तर

गर्दिश-ए-जाम भी है रक़्स भी है साज़ भी है

राम कृष्ण मुज़्तर

दिल-ओ-नज़र में न पैदा हुई शकेबाई

राम कृष्ण मुज़्तर

वक़्त-ए-रुख़्सत वो आँसू बहाने लगे

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

सीने में जब दर्द कोई बो जाता है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

दिए जला के हवाओं के मुँह पे मार आया

रख़शां हाशमी

हर इक छोटी से छोटी बात पर नादाँ निकलती है

रजनीश सचन

इक गुल-ए-तर भी शरर से निकला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

छुपी है तुझ में कोई शय उसे न ग़ारत कर

राजेन्द्र मनचंदा बानी

आ जाना

राजेन्द्र नाथ रहबर

बे-वफ़ाओं को वफ़ाओं का ख़ुदा हम ने कहा

राजेन्द्र नाथ रहबर

वो जितना मुझे आज़माता रहेगा

राजेन्द्र कलकल

उठा ख़ुद जिस से जाता भी नहीं है

राजेन्द्र कलकल

किस तरह पर ऐसे बद-ख़ू से सफ़ाई कीजिए

रजब अली बेग सुरूर

इस तरह आह कल हम उस अंजुमन से निकले

रजब अली बेग सुरूर

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