दर्द Poetry (page 18)
चुपके चुपके ग़म का खाना कोई हम से सीख जाए
ज़ौक़
ज़बाँ का ज़ाविया लफ़्ज़ों की ख़ू समझता है
शहपर रसूल
सुख़न किया जो ख़मोशी से शायरी जागी
शहपर रसूल
हम ज़िंदगी-शनास थे सब से जुदा रहे
शहपर रसूल
हमारे दर्द की जानिब इशारा करती हैं
शहपर रसूल
कुछ दर्द है मुतरिबों की लय में
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
कहूँ मैं क्या कि क्या दर्द-ए-निहाँ है
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
बे-नंग-ओ-नाम
शाज़ तमकनत
सन कर बयान-ए-दर्द कलेजा दहल न जाए
शाज़ तमकनत
मैं तो चुप था मगर उस ने भी सुनाने न दिया
शाज़ तमकनत
एक रात आप ने उम्मीद पे क्या रक्खा है
शाज़ तमकनत
दिल-शिकस्ता हुए टूटा हुआ पैमान बने
शाज़ तमकनत
हज़ारों मुश्किलें हैं और लाखों ग़म लिए हैं हम
शायान क़ुरैशी
हुई या मुझ से नफ़रत या कुछ इस में किब्र-ओ-नाज़ आया
शौक़ क़िदवाई
तुम्हें हुस्न ने पुर-जफ़ा कर दिया
शौक़ देहलवी मक्की
शब-हाए-ऐश का वो ज़माना किधर गया
शौक़ देहलवी मक्की
नई बज़्म-ए-ऐश-ओ-नशात में ये मरज़ सुना है कि आम है
शौक़ बहराइची
शरीक-ए-दर्द नहीं जब कोई तो ऐ 'शौकत'
शौकत परदेसी
शिद्दत-ए-दर्द-ए-जिगर हो ये ज़रूरी तो नहीं
शातिर हकीमी
मुझे हँसना पड़ा आख़िर
शारिक़ कैफ़ी
बे-तकल्लुफ़ मिरा हैजान बनाता है मुझे
शारिक़ कैफ़ी
मिले हैं दर्द ही मुझ को मोहब्बतों के एवज़
शारिब मौरान्वी
जो आँसुओं की ज़बाँ को मियाँ समझने लगे
शारिब मौरान्वी
तमाम चारागरों से तो मिल चुका है जवाब
शरफ़ मुजद्दिदी
मौसम-ए-संग-ओ-रंग से रब्त-ए-शरार किस को था
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
महफ़िल का नूर मरजा-ए-अग़्यार कौन है
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
चेहरे का आफ़्ताब दिखाई न दे तो फिर
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
पहले साबित करें इस वहशी की तक़्सीरें दो
शम्स-उन-निसा बेगम शर्म
ये क्या अंदाज़ हैं दस्त-ए-जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ के
शम्स इटावी
मिरे ए'तिमाद को ग़म मिला मिरी जब किसी पे नज़र गई
शम्स फ़र्रुख़ाबादी
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