दर्द Poetry (page 14)
नहीं इस दश्त में कोई ख़िज़र है
सुलैमान अहमद मानी
इक तिरा दर्द है तन्हाई है रुस्वाई है
सुलैमान अहमद मानी
और कर लेंगे वो क्या अब हमें रुस्वा कर के
सुलैमान अहमद मानी
बरसों हुए उस से न कोई बात हुई रात
सुहैल काकोरवी
उठिए तो कहाँ जाइए जो कुछ है यहीं है
सुहा मुजद्ददी
कब तक भँवर के बीच सहारा मिले मुझे
सुग़रा सदफ़
शाम-ए-फ़िराक़ अपनी फ़रोज़ाँ न कर सके
सुग़रा सब्ज़वारी
बहार का क़र्ज़
सूफ़िया अनजुम ताज
ज़ब्त की क़ैद-ए-सख़्त ने हम को रिहा नहीं किया
सूफ़िया अनजुम ताज
वो एक लड़की जो ख़ंदा-लब थी न जाने क्यूँ चश्म-तर गई वो
सूफ़िया अनजुम ताज
'अंजुम' पे जो गुज़र गई उस का भला हिसाब क्या
सूफ़िया अनजुम ताज
ऐसा न हो ये दर्द बने दर्द-ए-ला-दवा
सूफ़ी तबस्सुम
ज़िंदगी क्या है इक सफ़र के सिवा
सूफ़ी तबस्सुम
ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब
सूफ़ी तबस्सुम
वो वुसअतें थीं दिल में जो चाहा बना लिया
सूफ़ी तबस्सुम
तुझ को आते ही नहीं छुपने के अंदाज़ अभी
सूफ़ी तबस्सुम
तिरी महफ़िल में सोज़-ए-जावेदानी ले के आया हूँ
सूफ़ी तबस्सुम
शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार
सूफ़ी तबस्सुम
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
सूफ़ी तबस्सुम
कुछ और गुमरही-ए-दिल का राज़ क्या होगा
सूफ़ी तबस्सुम
किसी में ताब-ए-अलम नहीं है किसी में सोज़-ए-वफ़ा नहीं है
सूफ़ी तबस्सुम
काविश-ए-बेश-ओ-कम की बात न कर
सूफ़ी तबस्सुम
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल-ए-सोगवार हो न सका
सूफ़ी तबस्सुम
हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं
सूफ़ी तबस्सुम
ग़म-नसीबों को किसी ने तो पुकारा होगा
सूफ़ी तबस्सुम
ऐसे भी थे कुछ हालात
सूफ़ी तबस्सुम
अगरचे आँख बहुत शोख़ियों की ज़द में रही
सूफ़ी तबस्सुम
अफ़्साना-हा-ए-दर्द सुनाते चले गए
सूफ़ी तबस्सुम
शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया
सुदर्शन फ़ाकिर
रत-जगे
सुबोध लाल साक़ी
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