दर Poetry
दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं
ग़ुलाम हुसैन साजिद
तिरे बग़ैर लग रहा है ये सफ़र ख़मोश है
एज़ाज़ काज़मी
उठ के दर से तुम्हारे अगर जाएँगे
हरभजन सिंह सोढ़ी बिस्मिल
इक्कीसवीं सदी का इश्क़
मर्यम तस्लीम कियानी
बच्चों का जुलूस
बलराज कोमल
मकान ख़ाली है
अज़ीज़ क़ैसी
कहाँ तहरीरें मैं ने बाँट दी हैं
हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी
मोहब्बतों में मुझे तो उदास रहने दे
फ़रह शाहिद
देखते ही धड़कनें सारी परेशाँ हो गईं
एहतिमाम सादिक़
शम्अ'
मुबश्शिर अली ज़ैदी
भली हो या कि बुरी हर नज़र समझता है
अतुल अजनबी
किस रंग में हैं अहल-ए-वफ़ा उस से न कहना
महमूद शाम
कैसे समझेगा सदफ़ का वो गुहर से रिश्ता
अख़्तर हाशमी
हिजरत
ग़ज़नफ़र
ज़ब्त की हद से भी जिस वक़्त गुज़र जाता है
शौक़ मुरादाबादी
वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा
अनवर अंजुम
ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं
आरिफ़ अब्दुल मतीन
किस को होगा तिरे आने का पता मेरे बा'द
महमूद शाम
मुद्दतों बा'द वो गलियाँ वो झरोके देखे
महमूद शाम
नज़र को क़ुर्ब-ए-शनासाई बाँटने वाले
हनीफ़ राही
दिल से अरमाँ निकल रहे हैं
अख़्तर सईद
मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई
नईम गिलानी
आधों की तरफ़ से कभी पौनों की तरफ़ से
आदिल मंसूरी
देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे
संजय मिश्रा शौक़
किसी के बिछड़ने का डर ही नहीं
फ़ारूक़ इंजीनियर
सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से
अजमल सिद्दीक़ी
कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था
महमूद शाम
इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ
अर्श सिद्दीक़ी
एक याद
हबीब जालिब
ख़ामोशी का शोर
फ़ैसल हाश्मी
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