दम Poetry (page 47)
जो ज़रूरी है कार कर पहले
अशोक साहनी
रौशनाई
अशोक लाल
परिक्रमा तवाफ़
अशोक लाल
आईने में ख़म आया
अशोक लाल
रफ़्ता रफ़्ता ख़त्म क़िस्सा हो गया होना ही था
अशअर नजमी
दम तोड़ती है शाम की नीली हवा
असग़र नदीम सय्यद
ऐ ख़ामोशी
असग़र नदीम सय्यद
वो शोरिशें निज़ाम-ए-जहाँ जिन के दम से है
असग़र गोंडवी
सामने उन के तड़प कर इस तरह फ़रियाद की
असग़र गोंडवी
आलाम-ए-रोज़गार को आसाँ बना दिया
असग़र गोंडवी
जाने लगे हैं अब दम-ए-सर्द आसमाँ तलक
असीर लखनवी
झपकी ज़रा जो आँख जवानी गुज़र गई
असर लखनवी
बहार है तिरे आरिज़ से लौ लगाए हुए
असर लखनवी
आह से जब दिल में डूबे तीर उभारे जाएँगे
असर लखनवी
नौ मंज़िला बिल्डिंग
असद मोहम्मद ख़ाँ
हम-साई
असद जाफ़री
कोई हमदम नहीं दुनिया में लेकिन
असअ'द बदायुनी
तलब की राहों में सारे आलम नए नए से
असअ'द बदायुनी
ख़ुशी भी अब सरापा ग़म लगे है
असअ'द बदायुनी
वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से
आरज़ू लखनवी
न कोई जल्वती न कोई ख़ल्वती न कोई ख़ास था न कोई आम था
आरज़ू लखनवी
मिरे जोश-ए-ग़म की है अजब कहानी
आरज़ू लखनवी
क्यूँ किसी रह-रौ से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता
आरज़ू लखनवी
कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना
आरज़ू लखनवी
करम उन का ख़ुद है बढ़ कर मिरी हद्द-ए-इल्तिजा से
आरज़ू लखनवी
जितना था सरगर्म-ए-कार उतना ही दिल नाकाम था
आरज़ू लखनवी
दिल मुकद्दर है आईना-रू का
आरज़ू लखनवी
देखें महशर में उन से क्या ठहरे
आरज़ू लखनवी
तक़दीर हो ख़राब तो तदबीर क्या करे
अरुण कुमार आर्य
जो बुझ गए थे चराग़ फिर से जला रहा है
अरशद नईम
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