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Collection: दम Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 41 - Darsaal

दम Poetry (page 41)

जब ख़िज़ाँ आई चमन में सब दग़ा देने लगे

बूम मेरठी

अल्लाह अल्लाह वस्ल की शब इस क़दर ए'जाज़ है

बूम मेरठी

वही होती है रहबर जो तमन्ना दिल में होती है

बिस्मिल सईदी

कब से उलझ रहे हैं दम-ए-वापसीं से हम

बिस्मिल सईदी

निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी

बिस्मिल अज़ीमाबादी

अब दम-ब-ख़ुद हैं नब्ज़ की रफ़्तार देख कर

बिस्मिल अज़ीमाबादी

ये कैसी आग अभी ऐ शम्अ तेरे दिल में बाक़ी है

बिस्मिल इलाहाबादी

आज़ार-ओ-जफ़ा-ए-पैहम से उल्फ़त में जिन्हें आराम नहीं

बिस्मिल इलाहाबादी

मोहब्बत नग़्मा भी है साज़ भी है

बिर्ज लाल रअना

काँटे हों या फूल अकेले चुनना होगा

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी

भारतेंदु हरिश्चंद्र

फिर मुझे लिखना जो वस्फ़-ए-रू-ए-जानाँ हो गया

भारतेंदु हरिश्चंद्र

फिर आई फ़स्ल-ए-गुल फिर ज़ख़्म-ए-दिल रह रह के पकते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

नींद आती ही नहीं धड़के की बस आवाज़ से

भारतेंदु हरिश्चंद्र

ख़याल-ए-नावक-ए-मिज़्गाँ में बस हम सर पटकते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

असीरान-ए-क़फ़स सेहन-ए-चमन को याद करते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

ग़म में डूबे ही रहे दम न हमारा निकला

बेख़ुद देहलवी

बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो

बेख़ुद देहलवी

पछताओगे फिर हम से शरारत नहीं अच्छी

बेख़ुद देहलवी

न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं

बेख़ुद देहलवी

न क्यूँ-कर नज़्र दिल होता न क्यूँ-कर दम मिरा जाता

बेख़ुद देहलवी

मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद

बेख़ुद देहलवी

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

हज़रत-ए-दिल ये इश्क़ है दर्द से कसमसाए क्यूँ

बेख़ुद देहलवी

हर एक बात तिरी बे-सबात कितनी है

बेख़ुद देहलवी

हैं निकहत-ए-गुल बाग़ में ऐ बाद-ए-सबा हम

बेख़ुद देहलवी

दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो

बेख़ुद देहलवी

दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं

बेख़ुद देहलवी

बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो

बेख़ुद देहलवी

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