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Collection: दम Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 33 - Darsaal

दम Poetry (page 33)

फ़रियाद भी मैं कर न सका बे-ख़बरी से

हबीब मूसवी

फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे

हबीब मूसवी

भला हो जिस काम में किसी का तो उस में वक़्फ़ा न कीजिएगा

हबीब मूसवी

अक़्ल पर पत्थर पड़े उल्फ़त में दीवाना हुआ

हबीब मूसवी

वो दर्द-ए-इश्क़ जिस को हासिल-ए-ईमाँ भी कहते हैं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

तिश्ना-ए-तकमील है वहशत का अफ़्साना अभी

ग्यान चन्द मंसूर

अब्र-पारा हूँ कोई दम में चला जाऊँगा

ज्ञान चंद जैन

तारे हमारी ख़ाक में बिखरे पड़े रहे

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

कंधे झुक जाते हैं

गुलज़ार

जब भी आँखों में अश्क भर आए

गुलज़ार

बहार इस धूम से आई गई उम्मीद जीने की

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

टुक देखियो ये अबरू-ए-ख़मदार वही है

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

क्या रफ़ू करने लगा है जा भी नादाँ यक तरफ़

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जफ़ा-ए-दिल-शिकन

ग़ुलाम दस्तगीर मुबीन

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

लब-ए-जाँ-बख़्श पे दम अपना फ़ना होता है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

तड़प तो आज भी कुछ कम नहीं है

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

जब चले जाएँगे हम लौट के सावन की तरह

गोपालदास नीरज

मुझ पे तू मेहरबान है प्यारे

गोपाल मित्तल

रह गई लुट कर बहार-ए-ज़िंदगी

गोपाल कृष्णा शफ़क़

मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है

ग़ुलाम मौला क़लक़

तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

तेरे दर पर मक़ाम रखते हैं

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट

ग़ुलाम मौला क़लक़

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