छोड़ दो Poetry (page 17)
नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
साबिर ज़फ़र
बदन ने छोड़ दिया रूह ने रिहा न किया
साबिर ज़फ़र
यहाँ जो पेड़ थे अपनी जड़ों को छोड़ चुके
साबिर ज़फ़र
वो क्यूँ न रूठता मैं ने भी तो ख़ता की थी
साबिर ज़फ़र
पड़ा न फ़र्क़ कोई पैरहन बदल के भी
साबिर ज़फ़र
नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
साबिर ज़फ़र
तअल्लुक़ तुम से जो भी है नहीं मालूम कल क्या हो
साबिर रज़ा
हो कोई मसअला अपना दुआ पर छोड़ देते हैं
साबिर रज़ा
अजनबी
साबिर दत्त
ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है
साबिर दत्त
जान भी साथ छोड़ देती है
साबिर बद्र जाफ़री
'बद्र' यूँ तो सभी से मिलता है
साबिर बद्र जाफ़री
एक मशवरा
सबा इकराम
अभी तो एक वतन छोड़ कर ही निकले हैं
सबा अकबराबादी
अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक
सबा अकबराबादी
कारवाँ लुट गया राहबर छुट गया रात तारीक है ग़म का यारा नहीं
सबा अफ़ग़ानी
इस शोला-ख़ू की तरह बिगड़ता नहीं कोई
रूही कंजाही
तुझ बिन रह-ए-हयात में लुत्फ़-ए-सफ़र कहाँ
रोहित सोनी ‘ताबिश’
वा'दा था जिस का हश्र में वो बात भी तो हो
रियाज़ ख़ैराबादी
थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक
रियाज़ ख़ैराबादी
वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके
रिन्द लखनवी
जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले
रिन्द लखनवी
दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे
रिन्द लखनवी
सिमटती फैलती तन्हाई सोते जागते दर्द
रियाज़ मजीद
जो सैल-ए-दर्द उठा था वो जान छोड़ गया
रियाज़ मजीद
तेरी गली को छोड़ के जाना तो है नहीं
रेहाना रूही
शायद कभी ऐसा हो कुछ फ़िल्म सा कर जाऊँ
रज़्ज़ाक़ अरशद
खुले में छोड़ रखा है मगर सलीक़े से
राज़िक़ अंसारी
कैसे इस शहर में रहना होगा
राज़ी अख्तर शौक़
जभी तो ज़ख़्म भी गहरा नहीं है
राज़ी अख्तर शौक़
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