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Collection: चाँद Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 27 - Darsaal

चाँद Poetry (page 27)

मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा

बशीर बद्र

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

बशीर बद्र

ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में

बशीर बद्र

ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत

बशीर बद्र

कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई

बशीर बद्र

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए

बशीर बद्र

फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है

बशीर बद्र

दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में

बशीर बद्र

चाय की प्याली में नीली टेबलेट घोली

बशीर बद्र

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया

बशीर बद्र

होगा क्या चाँद-नगर सोचते हैं

बशीर मुंज़िर

करोगे याद तो हर बात याद आएगी

बशर नवाज़

ये हुस्न है झरनों में न है बाद-ए-चमन में

बशर नवाज़

खेत से बच कर गुज़रे बस्ती को वीरानी दे

बाक़र नक़वी

दवा बग़ैर कोई तिफ़्ल मर गया तो क्या हुआ

बाक़र नक़वी

बहुत ज़ी-फ़हम हैं दुनिया को लेकिन कम समझते हैं!

बाक़र मेहदी

बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है

बाक़र मेहदी

पूछना चाँद का पता 'आज़र'

बलवान सिंह आज़र

गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए

बलवान सिंह आज़र

उस ने मेरे नाम सूरज चाँद तारे लिख दिया

अज़रा परवीन

बे-ख़ुदा होने के डर में बे-सबब रोता रहा

अज़रा परवीन

ख़्वाब-जंगल

अज़रा नक़वी

किसी ख़याल की हिद्दत से जलना चाहती हूँ

अज़रा नक़वी

क़िस्सा-ए-दर्द

अज़ीज़ तमन्नाई

मेरी आहट

अज़ीज़ तमन्नाई

रफ़्तगाँ

अज़ीज़ क़ैसी

ग़रीब शहर

अज़ीज़ क़ैसी

आईने से

अज़ीज़ क़ैसी

हर आँख लहू सागर है मियाँ हर दिल पत्थर सन्नाटा है

अज़ीज़ क़ैसी

आह-ए-बे-असर निकली नाला ना-रसा निकला

अज़ीज़ क़ैसी

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