चाँद Poetry (page 24)
बहुत सी आँखें लगीं हैं और एक ख़्वाब तय्यार हो रहा है
फ़रहत एहसास
जब तिरी ज़ात को फैला हुआ दरिया समझूँ
फ़रहत अब्बास
क्या बताएँ क्या कल शब आख़िरी पहर देखा
फ़रहान सालिम
जब तमन्नाएँ मुस्कुराती हैं
फ़रीद इशरती
अफ़्साना-ए-शब-रंग
फ़रीद इशरती
ज़रा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए
फ़रह इक़बाल
सारे मंज़र दिलकश थे हर बात सुहानी लगती थी
फ़रह इक़बाल
मोहब्बत का दिया ऐसे बुझा था
फ़रह इक़बाल
न चाँद ने किया रौशन मुझे न सूरज ने
फ़राग़ रोहवी
मैं एक बूँद समुंदर हुआ तो कैसे हुआ
फ़राग़ रोहवी
उन के जल्वों पे हमा-वक़्त नज़र होती है
फ़ना बुलंदशहरी
तुझे ढूँढती हैं नज़रें मुझे इक झलक दिखा जा
फ़ना बुलंदशहरी
उस ने किया हिजाब मिरे देखने के बा'द
फख़्र अब्बास
फिर ज़बान-ए-इश्क़ चश्म-ए-ख़ूँ-फिशाँ होने लगी
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
कोई नाम है न कोई निशाँ मुझे क्या हुआ
फ़ैज़ी
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
सुरुद-ए-शबाना
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मेरे मिलने वाले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
क्या करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कहाँ जाओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
इंतिसाब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
गाँव की सड़क
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
'शोपीं' का नग़्मा बजता है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शफ़क़ की राख में जल बुझ गया सितारा-ए-शाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
क्यूँ आसमान-ए-हिज्र के तारे चले गए
फ़ैसल फेहमी
इश्क़ की आज इंतिहा कर दो
फ़ैसल फेहमी
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