लोड Poetry (page 10)
बाज़ार-ए-ज़िंदगी में जमे कैसे अपना रंग
बशर नवाज़
जुनूँ की राख से मंज़िल में रंग क्या आए
बाक़ी सिद्दीक़ी
धरती का बोझ
बाक़र मेहदी
उतर जाता तो रुस्वाई बहुत होती
बकुल देव
तिरा लहज़ा वही तलवार जैसा था
बकुल देव
निशान-ए-ज़ख़्म पे निश्तर-ज़नी जो होने लगी
बद्र-ए-आलम ख़लिश
महसूस हो रहा है जो ग़म मेरी ज़ात का
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
थकन से चूर है सारा वजूद अब मेरा
बाबर रहमान शाह
नहीं नहीं ये मिरा अक्स हो नहीं सकता
बाबर रहमान शाह
कुछ नहीं होता शब भर सोचों का सरमाया होता है
अज़रक़ अदीम
एक ज़िंदगी और मिल जाए
अज़रा अब्बास
बे-हद ग़म हैं जिन में अव्वल उम्र गुज़र जाने का ग़म
अज़्म बहज़ाद
रफ़्तगाँ
अज़ीज़ क़ैसी
बैठो जी का बोझ उतारें दोनों वक़्त यहीं मिलते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
बैठो जी का बोझ उतारें दोनों वक़्त यहीं मिलते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
यही नहीं कि नज़र को झुकाना पड़ता है
अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़
वो मेरा यार था मुझ को न ये ख़याल आया
अज़हर इनायती
हँसने-हँसाने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र है
अज़हर फ़राग़
जब तिरे ख़्वाब से बेदार हुआ करते थे
अज़हर अब्बास
कुछ और हो भी तो राएगाँ है
अय्यूब ख़ावर
वो मेरे नाले का शोर ही था शब-ए-सियह की निहायतों में
अतीक़ुल्लाह
यक़ीन बरसों का इम्कान कुछ दिनों का हूँ
अतहर नासिक
लम्हों के अज़ाब सह रहा हूँ
अतहर नफ़ीस
कहानियाँ ख़मोश हैं पहेलियाँ उदास हैं
अतीक़ अंज़र
जुदाई हद से बढ़ी तो विसाल हो ही गया
अतीक़ इलाहाबादी
चंद लम्हों को सही था साथ में रहना बहुत
अतीक़ इलाहाबादी
दिल पे यादों का बोझ तारी है
अतीब एजाज़
वो शख़्स फिर कहानी का उन्वान बन गया
असरा रिज़वी
उदास आँखें ग़ज़ाल आँखें
असरा रिज़वी
क़रीब आ के भी इक शख़्स हो सका न मिरा
असलम कोलसरी
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