हसन Poetry (page 51)

जाम-ए-गदाई हाथ में ले नित सांज-सवेरे फिरते हैं

भूरे ख़ान आशुफ़्ता

ग़ाफ़िल इतना हुस्न पे ग़र्रा ध्यान किधर है तौबा कर

भारतेंदु हरिश्चंद्र

फ़साद-ए-दुनिया मिटा चुके हैं हुसूल-ए-हस्ती मिटा चुके हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी

भारतेंदु हरिश्चंद्र

अक़्ल दौड़ाई बहुत कुछ तो गुमाँ तक पहुँचे

बेताब अज़ीमाबादी

न देखना कभी आईना भूल कर देखो

बेख़ुद देहलवी

आइना देख कर वो ये समझे

बेख़ुद देहलवी

वो सुन कर हूर की तारीफ़ पर्दे से निकल आए

बेख़ुद देहलवी

वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी

बेख़ुद देहलवी

उठे तिरी महफ़िल से तो किस काम के उठ्ठे

बेख़ुद देहलवी

टूटे पड़ते हैं ये हैं किस के ख़रीदार तमाम

बेख़ुद देहलवी

तुम हमारे दिल-ए-शैदा को नहीं जानते क्या

बेख़ुद देहलवी

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

जो तमाशा नज़र आया उसे देखा समझा

बेख़ुद देहलवी

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर

बेख़ुद देहलवी

बनी थी दिल पे कुछ ऐसी की इज़्तिराब न था

बेख़ुद देहलवी

ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है

बेख़ुद देहलवी

अदू को देख के जब वो इधर को देखते हैं

बेख़ुद देहलवी

आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप

बेख़ुद देहलवी

यूँही रहा जो बुतों पर निसार दिल मेरा

बेखुद बदायुनी

नज़र की फ़त्ह कभी क़ल्ब की शिकस्त लगे

बेकल उत्साही

ख़ुद अपने जुर्म का मुजरिम को ए'तिराफ़ न था

बेकल उत्साही

उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैं

बहज़ाद लखनवी

तुम्हारे हुस्न की तस्ख़ीर आम होती है

बहज़ाद लखनवी

मोहब्बत मुस्तक़िल कैफ़-आफ़रीं मालूम होती है

बहज़ाद लखनवी

ख़ुदा को ढूँड रहा था कहीं ख़ुदा न मिला

बहज़ाद लखनवी

है ख़िरद-मंदी यही बा-होश दीवाना रहे

बहज़ाद लखनवी

ये ख़ुसरवी-ओ-शौकत-ए-शाहाना मुबारक

बेदम शाह वारसी

सीने में दिल है दिल में दाग़ दाग़ में सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़

बेदम शाह वारसी

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