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Collection: हसन Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 34 - Darsaal

हसन Poetry (page 34)

उलझनें इतनी थीं मंज़र और पस-मंज़र के बीच

हुसैन ताज रिज़वी

इतनी सी इस जहाँ की हक़ीक़त है और बस

हुसैन सहर

ज़ौक़-ए-तकल्लुम पर उर्दू ने राह अनोखी खोली है

हुरमतुल इकराम

तबीअत इन दिनों औहाम की उन मंज़िलों पर है

हुमैरा रहमान

तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो

होश तिर्मिज़ी

पास-ए-नामूस-ए-तमन्ना हर इक आज़ार में था

होश तिर्मिज़ी

मिलता नहीं मिज़ाज ख़ुद अपनी अदा में है

होश तिर्मिज़ी

गो दाग़ हो गए हैं वो छाले पड़े हुए

होश तिर्मिज़ी

हरीफ़-ए-विसाल

हिमायत अली शाएर

दूसरा तजरबा

हिमायत अली शाएर

अन-कही

हिमायत अली शाएर

ये शहर-ए-रफ़ीक़ाँ है दिल-ए-ज़ार सँभल के

हिमायत अली शाएर

मंज़िल के ख़्वाब देखते हैं पाँव काट के

हिमायत अली शाएर

क्या क्या न ज़िंदगी के फ़साने रक़म हुए

हिमायत अली शाएर

इस शहर-ए-ख़ुफ़्तगाँ में कोई तो अज़ान दे

हिमायत अली शाएर

कभी तो सेहन-ए-अना से निकले कहीं पे दश्त-ए-मलाल आया

हिलाल फ़रीद

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

हिलाल फ़रीद

दिल फ़ुर्क़त-ए-हबीब में दीवाना हो गया

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

परतव-ए-हुस्न हूँ इस वास्ते महदूद हूँ मैं

हीरा लाल फ़लक देहलवी

नज़रों में हुस्न दिल में तुम्हारा ख़याल है

हीरा लाल फ़लक देहलवी

रंग-आमेज़ी से पैदा कुछ असर ऐसा हुआ

हीरा लाल फ़लक देहलवी

मेरी हस्ती में मिरी ज़ीस्त में शामिल होना

हीरा लाल फ़लक देहलवी

अश्क-ए-ग़म वो है जो दुनिया को दिखा भी न सकूँ

हीरा लाल फ़लक देहलवी

वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया

हातिम अली मेहर

न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए

हातिम अली मेहर

इश्क़-ए-जान-ए-जहाँ नसीब हुआ

हातिम अली मेहर

हम से किनारा क्यूँ है तिरे मुब्तला हैं हम

हातिम अली मेहर

अजब है 'मेहर' से उस शोख़ की विसाल का वक़्त

हातिम अली मेहर

ये ख़ाकी आग से हो कर यहाँ पे पहुँचा है

हस्सान अहमद आवान

तमाम तारों को जैसे क़मर से जोड़ा है

हस्सान अहमद आवान

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