हसन Poetry (page 25)
तिरे सिवा मिरी हस्ती कोई जहाँ में नहीं
साहिर देहल्वी
सर-ए-अर्श-ए-बरीं है ज़ेर-ए-पा-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना
साहिर देहल्वी
समद को सरापा सनम देखते हैं
साहिर देहल्वी
नूर-ए-ईमाँ सुर्मा-ए-चश्म-ए-दिल-ओ-जाँ कीजिए
साहिर देहल्वी
मस्त-ए-निगाह-ए-नाज़ का अरमाँ निकालिए
साहिर देहल्वी
कैफ़-ए-मस्ती में अजब जलवा-ए-यकताई था
साहिर देहल्वी
काम इस दुनिया में आ कर हम ने क्या अच्छा किया
साहिर देहल्वी
जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब
साहिर देहल्वी
जसद ने जान से पूछा कि क़ल्ब-ए-बे-रिया क्या है
साहिर देहल्वी
गोया ज़बान हाल थी 'साहिर' ख़मोश था
साहिर देहल्वी
फ़ज़ा-ए-आलम-ए-क़ुदसी में है नश्व-ओ-नुमा मेरी
साहिर देहल्वी
अयाँ हो रंग में और मिस्ल-ए-बू गुल में निहाँ भी हो
साहिर देहल्वी
मोहलत न दे ज़रा भी मुझे मेरी जान खींच
सहबा वहीद
जवाज़-ए-आब-ओ-ताब अब गुलाब के लिए नहीं
सहबा वहीद
कुल जहाँ इक आईना है हुस्न की तहरीर का
सहबा अख़्तर
चमन में रह के भी क्यूँ दिल की वीरानी नहीं जाती
सहर महमूद
अँधेरे से ज़ियादा रौशनी तकलीफ़ देती है
सहर महमूद
हाथ आ सका है सिलसिला-ए-जिस्म-ओ-जाँ कहाँ
सहर अंसारी
मेरे तसव्वुरात हैं तहरीरें इश्क़ की
साग़र सिद्दीक़ी
मआल-ए-नग़्मा-ओ-मातम फ़रोख़्त होता है
साग़र सिद्दीक़ी
भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए
साग़र सिद्दीक़ी
ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम! ज़रा आँख तो मिला
साग़र सिद्दीक़ी
आहन की सुर्ख़ ताल पे हम रक़्स कर गए
साग़र सिद्दीक़ी
सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया
साग़र निज़ामी
फिर रह-ए-इश्क़ वही ज़ाद-ए-सफ़र माँगे है
साग़र निज़ामी
जो रहीन-ए-तग़य्युरात नहीं
साग़र निज़ामी
उस्ताद मर गए
साग़र ख़य्यामी
उल्टी गंगा
साग़र ख़य्यामी
पड़ोसी की मुर्ग़ियाँ
साग़र ख़य्यामी
इक्कीसवीं सदी का आदमी
साग़र ख़य्यामी
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