हसन Poetry (page 23)
एक तरफ़ तिरे हुस्न की हैरत एक तरफ़ दुनिया
सलीम कौसर
भला वो हुस्न किस की दस्तरस में आ सका है
सलीम कौसर
तू सूरज है तेरी तरफ़ देखा नहीं जा सकता
सलीम कौसर
कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से
सलीम कौसर
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
सलीम कौसर
कभी मौसम साथ नहीं देते कभी बेल मुंडेर नहीं चढ़ती
सलीम कौसर
ग़ुबार होती सदी के सहराओं से उभरते हुए ज़माने
सलीम कौसर
अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं
सलीम कौसर
अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
सलीम कौसर
तिरी तलाश में गुज़रे कई ज़माने मुझे
सलीम काशीर
फूलों की है तख़्लीक़ कि शो'लों से बना है
सलीम बेताब
दिल हुस्न को दान दे रहा हूँ
सलीम अहमद
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
सलीम अहमद
किन नक़ाबों में है मस्तूर वो हुस्न-ए-मा'सूम
सलीम अहमद
इश्क़ और नंग-ए-आरज़ू से आर
सलीम अहमद
एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई
सलीम अहमद
दिल हुस्न को दान दे रहा हूँ
सलीम अहमद
दीदनी है हमारी ज़ेबाई
सलीम अहमद
वो दिल से तंग आ के आज महफ़िल में हुस्न की तमकनत की ख़ातिर
सलाम मछली शहरी
मजबूरियाँ
सलाम मछली शहरी
आज फिर ये कह रहा हूँ
सलाम मछली शहरी
तुम्हें मिरे ख़याल की मुसव्विरी क़ुबूल हो
सलाम मछली शहरी
न मौज-ए-बादा न ज़ुल्फ़ों न इन घटाओं ने
सलाम मछली शहरी
काश तुम समझ सकतीं ज़िंदगी में शाएर की ऐसे दिन भी आते हैं
सलाम मछली शहरी
कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं
सलाम मछली शहरी
ग़म पर हैं तअ'ना-ज़न तो ख़ुशी भी निभाइए
सलाम मछली शहरी
हमें तो हर्फ़-ए-तमन्ना ज़बाँ पे लाना है
सज्जाद सय्यद
दुआओं में असर बाक़ी न आहों में असर बाक़ी
सज्जाद शम्सी
छलकी हर मौज-ए-बदन से हुस्न की दरिया-दिली
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ज़हर इन के हैं मिरे देखे हुए भाले हुए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
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